गोरखपुर। सरकार लोगों को सस्ती दवाएं उपलब्ध कराने का दावा कर रही है, लेकिन दावे के उलट दवा कंपनियां कीमतों में हर छह माह में 10 से 15 फीसदी तक इजाफा कर रहीं हैं। कीमतों में बढ़ोत्तरी कुछ खास दवाओं तक ही सीमित नहीं, ज्यादातर दवाओं की कीमतों में ऐसा ही उछाल है। दरअसल ड्रग इंस्पेक्टर जय सिंह ने बताया कि राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण की ओर से दवाओं के दाम तय किए जाते हैं। दवा को ब्लैक में बेचने पर विभाग को कार्रवाई का अधिकार है। निर्धारित मूल्य से अधिक दवा बेचने पर विभाग कार्रवाई करता है।

अब तक ऐसी कोई शिकायत भी नहीं आई है। वहीं ड्रगिस्ट एंड केमिस्ट एसोसिएशन के महामंत्री दिलीप सिंह ने बताया कि लोकल दवाओं का रेट बढ़ना समझ से परे हैं, क्योंकि लोकल दवाएं यहीं तैयार होती हैं। जबकि, इंपोर्ट होने वाली दवाओं के दाम कच्चे माल के हिसाब से घटते बढ़ते रहते हैं। डालर के निर्धारण पर उनका रेट तय होता है। गौरतलब है कि एंटीबायोटिक डॉक्सीसाइक्लिन 100 एमजी के एक स्ट्रिप की कीमत बीते अगस्त में 74 रुपये थी। नवंबर में 10 गोली वाली इसी स्ट्रिप की कीमत 92-95 रुपये हो गई है।

मानसिक रोगियों को दी जाने वाली दवा एसिलाटोप्रैम 15 गोली की कीमत जुलाई माह में 150 रुपये थी। नंवबर माह में इसकी कीमत बढ़कर 225 से 230 रुपये के बीच हो गई है। गैस में दी जाने वाली पैंटोप्रॉजोल और रेबिप्रॉजोल की कीमत अप्रैल माह में 172 रुपये पत्ता था। अक्तूबर माह में इसकी कीमत बढ़कर 195-210 रुपये पत्ता कर दिया गया है।महिलाओं में हार्मोंस बढ़ाने वाली दवा डुफास्टोन 10 गोली की कीमत जुलाई माह में 590 रुपये थी। अक्तूबर माह में 680 से 690 रुपये कर दी गई है।

दरअसल जानकार बताते हैं कि बाजार में मांग बढ़ते ही दवाओं का नया बैच जारी कर दिया जा रहा है और इसके साथ ही दवाओं के दाम भी बढ़ा दिए जा रहे हैं। इससे ग्राहक और दवा व्यापारी परेशान हैं। दवा व्यापारियों का कहना है कि जिस दवा की डिमांड ज्यादा रहती है, कंपनियां उनका दाम बढ़ा दे रहीं हैं। ऐसे में मजबूरी में हमें भी महंगे दाम पर दवाएं बेचनी पड़ती हैं। आम आदमी कंपनियों के इस खेल में पिस रहा है। मजबूरी में उसे दवा हर हाल में खरीदनी पड़ रही है। वहीं सिद्धार्थ सिंह ने कहा कि दो माह पहले रेबिप्रॉजोल को 172 रुपये में ले गया था। अब यही दवा 195 रुपये में दी गई। ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है।

सरकार को दवा कंपनियों द्वारा बेतहाशा मूल्य वृद्धि पर अंकुश लगाना चाहिए। इस पर सख्त निर्णय लेने की जरूरत है। प्रशांत सिंह ने कहा कि दवाओं के दाम में बेहताशा वृद्धि की जा रही है। जेनरिक दवाएं लोगों को मिल नहीं रही हैं। उस पर दवाओं के दाम 15 से 20 फीसदी बढ़ा देना गलत कदम है। दवाओं के दाम पर सरकार को नियंत्रण रखना चाहिए। राकेश ने कहा कि गर्भवतियों को दी जाने वाली दवा की कीमत पिछले दो से तीन महीनों में काफी बढ़ गई है। एक पत्ते की कीमत में करीब 50 से 60 रुपये का इजाफा हुआ है।

दुकानदार ऊपर से ही दवा की कीमत बढ़ने का हवाला देते हैं। ऐसे में मजबूरी में दवाएं खरीदनी पड़ रही है। दरअसल दवा विक्रेता समिति के महामंत्री आलोक चौरसिया ने बताया कि दवाओं के दाम बढ़ने से थोक बाजार की लागत बढ़ जाती है। थोक व्यापारियों को तो इससे ज्यादा दिक्कत नहीं होती, लेकिन फुटकर दुकानदारों की समस्या बढ़ जाती है। क्योंकि मरीज कम मात्रा में दवाएं खरीदता है। कोई एक पत्ता ले जाता है और पांच दिन बाद जब वहीं दवा लेने दूसरी बार आता है, तो उसे महंगे दाम पर दिया जाता है।

इस दौरान दुकानदारों और ग्राहकों में बहस भी हो जाती है। तो वहीं दूसरी तरफ एंटी फंगल क्रीम के दाम में हर छह माह में जबरदस्त इजाफा हो रहा है। लुलीकोनाजोल 10 ग्राम क्रीम की कीमत छह माह पहले 120 रुपये थी। अक्तूबर माह में इसकी कीमत 150-170 रुपये के बीच हो गई है। केटोकोनाजोल की कीमत छह माह पहले 60-65 रुपये थी, जबकि नंवबर माह में इसकी कीमत बढ़कर 90 से 115 रुपये के बीच हो गई है।

इतना ही नहीं, कील मुंहासे के लिए सबसे ज्यादा बिकने वाली दवा आइसोट्रोइन कैप्सूल की कीमत जहां 150 से 160 रुपये के बीच थी, वही अब इसकी कीमत 250 से 270 रुपये के बीच हो गई है। गौरतलब है कि बेतियाहाता में दवा खरीदने आए राकेश सोनी ने बताया कि आपदा में दवा कंपनियां अवसर ढूंढ रही हैं। आम लोगों की मजबूरी का फायहा उठा रही हैं। उन्हें पता है कि मजबूरी में लोग दवा लेंगे ही। यही वजह है कि दवा के दाम इस तरह से बढ़ाए जा रहे हैं, जबकि इस पर सरकार को नियंत्रण रखना चाहिए। जिससे की आम नागरिक को सस्ती दवाएं मिल सके।