नई दिल्ली। माइक्रोप्लाज्मा निमोनिया और ग्लाइसेंड थेरेप्यूटिक्स जैसी गंभीर बीमारियों ने ड्रेगन को परेशान कर दिया है। इसके चलते दवा कंपनियों का भारतीय फार्मा सेक्टर में इंटरेस्ट बढ़ रहा है।
गौरतलब है कि चीन की नीचे खिसक रही जीडीपी ने उसकी मुश्किलों को बढ़ा दिया है। वल्र्ड ऑफ स्टेटिस्टिक्स ने चीन के अनुमानित जीडीपी ग्रोथ को घटाकर 5 फीसदी कर दिया है। चीन का रियल एस्टेट अब तक के सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है। रियल एस्टेट और बैंकिंग सेक्टर तक इसकी आग पहुंच गई है। चीन में रहस्यमयी तरीके से फैल रहे माइक्रोप्लाज्मा निमोनिया और इन्फ्लूएंजा फ्लू ने इसकी परेशानी को और बढ़ा दिया है। इससेचीन का फार्मा सेक्टर भी मुश्किलों में घिरता दिख रहा है। बड़ी दवा कंपनियों का चीन से मोह भंग हो रहा है। खासकर अमेरिका के साथ चीन को दुश्मनी भारी पडऩे लगी है।
फार्मा कंपनियां चीन पर अपनी निर्भरता को कम करने की कोशिश कर रही हैं। ड्रगमेकर्स चीनी कॉन्ट्रैक्टर्स पर अपनी निर्भरता को घटाने की कोशिश कर रहे हैं। गौरतलब है कि फार्मा कंपनियों के लिए चीनी कॉन्ट्रैक्टर क्लीनिकल ट्रायल्स और प्रारंभिक चरण के निर्माण में इस्तेमाल होने वाली दवाओं का उत्पादन करते हैं। अब फार्मा कंपनियां चीनी कॉन्ट्रैक्टर पर अपनी निर्भरता को कम करने लगी हैं। कम लागत और तेज रफ्तार के कारण चीन फार्मास्युटिकल रिसर्च और मैन्युफैक्चरिंग के लिए दवा कंपनियों का पसंदीदा जगह हुआ करता था, लेकिन चीन के सख्त रवैये और अमेरिका के साथ बढ़ते ट्रेड वॉर के बाद से फार्मा कंपनियां चीन से दूरी बढ़ा रही हंै।
ऐसे में चीन से बढ़ती दूरी भारत के लिए खास अवसर बन सकती है। बायोटेक कंपनियां क्लिनिकल ट्रायल, रिसर्च और आउटसोर्स के लिए भारतीय मैन्युफैक्टरिंग कंपनियों के साथ काम करने पर विचार कर रही हंै। डायबिटीज और मोटापे के उपचार के लिए दवा बनाने वाली फार्मा कंपनी ग्लाइसेंड थेरेप्यूटिक्स के फाउंडर आषीन निमगांवकर का कहना है कि ऐसे कई फैक्टर्स हैं, जिसने चीन को बायोटेक कंपनियों के लिए कम आकर्षक बना दिया है। कंपनियां चीन की बजाए अब भारतीय कंपनियों के साथ काम करने में रुचि दिखा रही है। चीनी कंपनियों के मुकाबले भारतीय कंपनियों को प्राथमिकता दी जा रही है। भारतीय कॉन्ट्रैक्ट डेवलपमेंट एंड मैन्युफैक्चरिंग ऑर्गेनाइजेशन को प्राथमिकता मिल रही है। भारत के चार प्रमुख सीडीएमओ सिनजीन, एराजेन लाइफ साइंसेज, पीरामल फार्मा सॉल्यूशंस, साई लाइफ साइंसेज के मुताबिक उन्हें बायोटेक कंपनियों खासकर पश्चिमी फार्मा कंपनियों की ओर से अधिक इंटरेस्ट देखने को मिल रहा है।