पटना। स्वास्थ्य विभाग ने नया नोटिफिकेशन जारी किया है जिससे दवा कंपनियों को बड़ा झटका लगा है। नोटिफिकेशन के तहत अब दवा कंपनियों के प्रतिनिधि (एमआर) अपने उत्पादों का प्रमोशन सरकारी स्वास्थ्य संस्थानों व अस्पतालों में नहीं कर सकेंगे। एमआर को सहयोग करने वाले डॉक्टरों व अन्य कर्मियों पर स्वास्थ्य विभाग अनुशासनात्मक कार्रवाई करेगा। साथ ही, निर्देश  के अनुपालन की नियमित समीक्षा, मूल्यांकन और आवश्यक कार्रवाई  के लिए जिला स्तर पर एक कमेटी गठित होगी। राज्य स्वास्थ्य समिति इस दिशा में काम कर रही है। इसके अलावा, सरकार ने वाह्य श्रोत से  दवा की पर्ची का ऑडिट कराने का भी निर्णय लिया है। स्वास्थ्य विभाग  के प्रधान सचिव संजय कुमार के अनुसार सरकार के संज्ञान में यह बात आई है कि स्वास्थ्य संस्थानों व अस्पतालों में दवा कंपनियों के प्रतिनिधि अस्पताल परिसर के साथ-साथ ओपीडी और आईपीडी में अपनी कंपनी के उत्पाद के प्रमोशन के लिए डॉक्टरों के पास पैरवी करते हैं। इससे सरकार की उस नीति को नुकसान होता है, जिसमें मरीजों को मुफ्त में दवा उपलब्ध करानी है। उन्हें जेनेरिक दवा प्रिस्क्राइब करनी है। इलाज के समय इस तरह की गतिविधियों से उपचार के समय का भी नुकसान होता है।
गौरतलब है कि राज्य सरकार ने निर्णय लिया है कि सभी सरकारी अस्पतालों में आवश्यक दवा सूची (ईडीएल) में निहित दवाएं ही लिखनी हैं। सरकार की यह भी नीति है कि सरकारी अस्पतालों में चिकित्सकों द्वारा जेनेरिक दवा ही प्रिस्क्राइब की जाए। यदि किसी परिस्थिति में ब्रांडेड दवा लिखनी हो तो संबंधित चिकित्सक दवा की पर्ची में इसके औचित्य को लिखेंगे।
स्वास्थ्य विभाग के नोटिफिकेशन में साफ-साफ कहा गया है कि दवा के प्रमोशन  के लिए एमआर का अस्पताल में प्रवेश पूरी तरह बंद रहेगा। साथ ही किसी चिकित्सक या कर्मी के पास या उनके कक्ष में एमआर अगर दवा का प्रोमोशन करते पाए जाएंंगे तो संबंधित  डॉक्टरों और कर्मियों के खिलाफ कार्रवाई होगी। अस्पतालों के अधीक्षक, उपाधीक्षक, प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी और अस्पताल प्रबंधक की यह जिम्मेदारी होगी कि वह सरकार के  निर्देश का पालन सुनिश्चित कराएंगे।