जयपुर। कोरोना महामारी के दौरान आयुर्वेद विभाग ने 21.58 करोड़ की दवाइयां खरीदने में सरकार को 13.70 करोड़ रुपए की चपत लगा दी है। नियमों के विपरित एक ही फर्म आईएमपीसीएल से ये दवाइयां खरीदी गई जिसकी कीमत बाजार मूल्य से 10-15 गुना तक ज्यादा थी। निविदा में एक ही फर्म होने के बावजूद आरटीटीपी नियम 2013 के नियम 68 का उल्लंघन करते हुए इस फर्म द्वारा दी गई दरों की तुलना बाजार दरों और पूर्व में खरीदी गई दरों से नहीं की गई। विभाग की निविदा में यह हवाला दिया गया था कि 47 दवाइयों की खरीदी होगी लेकिन पूरी राशि 30 दवाइयों की खरीद पर ही खत्म कर दी गई। वित्तीय नियमों के अनुसार किसी कंपनी की दरें यदि ज्यादा हैं तो उसके साथ निगोसिएशन कर काउंटर ऑफर दिया जाता है लेकिन विभाग ने इस प्रक्रिया का पालन नहीं किया। निविदा शर्तों के अनुसार विभागीय टीम को फर्म के दवा निर्माण स्थल का निरीक्षण करना था लेकिन इस फर्म के एजेंट कार्यालय का निरीक्षण कर खानापूर्ति कर ली गई। इतना ही नहीं, कोरोना के दौरान इसी फर्म को बिना निविदा के 3.94 करोड़ रुपए की इम्युनिटी बढ़ाने वाली दवाइयों की खरीद का आर्डर दे दिया गया। ये दवाइयां भी बाजार दरों से 10-15 गुना तक महंगी थी जिसके कारण सरकार को 99 लाख रुपए का नुकसान हुआ। नियमानुसार पिछले तीन साल में किसी कंपनी की कोई भी दवा अमानक घोषित हुई हो वह निविदा प्रक्रिया में भाग नहीं ले सकती जबकि आईएमपीसीएल कंपनी की दवा सरकारी मान्यता प्राप्त एनएबीएल लैब से कराने पर अमानक पाई गई थी। कंपनी ने झूठा शपथ पत्र देकर यह तथ्य छिपाया। क्रय समिति के अध्यक्ष आरपी चतुर्वेदी का कहना है कि दवाइयां नियमानुसार ही खरीदी गई हैं। इस मामले की शिकायत आई हैं। जांच के बाद ही कुछ कहा जा सकेगा।