पटना
दवा विक्रय के लिए रिटेल शॉप पर फार्मासिस्ट की अनिवार्यता को समाप्त करने संबंधी बी.सी.डी.ए. (बिहार केमिस्ट एंड ड्रगिस्ट एसोसिएशन) द्वारा हाईकोर्ट में दायर याचिका सिंगल बेंच ने स्वीकार कर अगली सुनवाई के लिए डबल बेंच पर स्थानांतरित कर दी गई है। हालांकि इस मामले को पहले राज्य के मुख्यमंत्री, स्वास्थ्यमंत्री, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री, प्रधानमंत्री भारत सरकार को ज्ञापन के माध्यम से संज्ञान में लाया गया। लंबे समय तक किसी लिखित कार्यवाही/ आश्वासन न मिलने पर हाईकोई का दरवाजा खटखटाया गया है।
याचिका में कहा गया कि फार्मासिस्ट की आवश्यकता उस समय अनिवार्य थी जब वैद्य हकीमों को आमजन के स्वास्थ्य सुधार के लिए जड़ी-बूटियों के मिश्रण, लेप, पुडिय़ा का स्वयं की देखरेख में नुस्खा तैयार करवाना होता था। उस समय फार्मासिस्ट नुस्खा तैयार कर सेवन/लेप हेतु रोगी को देते थे। आज के समय में कंपनी में औषधि निर्माता सही मात्रा में नुस्खा तैयार कर उस नुस्खे को एक नाम दे देते हैं। डॉ. उस नाम वाले नुस्खे को परामर्श पर्ची पर लिखकर रोगी को सेवन विधि भी सुझाता है। दवा की दुकान करने वाले का काम उस परामर्श पर्ची को पढ़ कर मात्र पत्ता, शीशी पाउडर, इंजेक्शन आदि रोगी को उपलब्ध करवानी होती है। आज दवा की दुकान करने वाले को इन सील बंद पैक को बिना छेड़छाड किए रोगी तक मात्र लिस पैक में औषधि निर्माता ने दवा सील बंद दवा विक्रेता तक पहुंचाई। उसी प्रारूप में रोगी तक उचित रख-रखाव के बाद ही रोगी तक पहुंचाती होती है। ऐसे में फार्मासिस्ट की जरूरत कहां रह जाती है।
बी.सी.डी.ए. के अध्यक्ष पी.के.सिंह ने बताया कि उनकी मांग दवा विक्रेताओं को सुरक्षित भविष्य उपलब्ध करवाने के मन से यह कदम उठाया गया है। यदि सरकार वर्तमान मेें दवा विक्रेताओं को मात्र उनकी दुकान चलाने के लिए व्यापारिक फार्मासिस्ट का दर्जा देती है तो यह सरकार का सरहानीय कदम होगा। सिंह ने कार्य संबंधी सही अनुभव होने की बात जरूर स्वीकारी है।