नई दिल्ली। दवा निर्माताओं के सामने मुश्किल होने वाली है। दरअसल, मिलते-जुलते दवा ब्रांडों पर सरकार नकेल कसने की योजना बना रही है। इससे दवा निर्माताओं को अपनी ब्रांडिंग प्रथाओं की बढ़ती जांच का सामना करना पड़ सकता है।

जानकारी अनुसार सरकार केवल नियामक से मंजूर ब्रांड नामों को ही वैध मानेगी। अन्य समान दिखने वाले ब्रांडों को विपणन की अनुमति नहीं दी जाएगी। दवा निर्माताओं को जल्द ही सरकार के पोर्टल पर अपने उत्पादों के ब्रांड नाम के साथ फॉर्मूलेशन विवरण अपलोड करने के लिए कहा जाएगा।

स्वास्थ्य मंत्रालय से जुड़े एक व्यक्ति ने बताया कि भारत में समान ब्रांड नामों के साथ बड़ी संख्या में दवाएं बेची जा रही हैं, जो पूरी तरह से अलग-अलग स्थितियों का इलाज करती हैं। फार्मेसी में इन दवाओं के बीच भ्रम के परिणाम रोगियों के लिए गंभीर हो सकते हैं।

बाजार में समान ब्रांड नामों के मुद्दे को लेकर सरकार ने संज्ञान लिया है और प्रस्ताव दिया है कि सुगम पोर्टल में ब्रांड नाम वाले सभी उत्पादों का डेटाबेस सुलभ बनाया जाए। कई ऐसे ब्रांड हैं जो भ्रम पैदा करते हैं। जैसे ओल्वेंस उच्च रक्तचाप रोधी दवा ओल्मेसार्टन का एक ब्रांड नाम है और ओलेंज एंटीसाइकोटिक दवा ओलंज़ापाइन का एक ब्रांड है।

दूसरा आईएमओएक्स (मनुष्यों के लिए एमोक्सिसिलिन गोलियाँ) और आईएनआईएमओएक्स (पशु चिकित्सा में उपयोग के लिए एक इंजेक्शन के रूप में एमोक्सिसिलिन और क्लोक्सासिलिन10 का संयोजन) है।
भारत की शीर्ष दवा सलाहकार संस्था ड्रग्स टेक्निकल एडवाइजरी बोर्ड ने विभिन्न श्रेणी के उत्पादों के लिए एक ही ब्रांड नाम के मुद्दे पर विचार-विमर्श किया और सुझाव दिया कि एक ही ब्रांड नाम के साथ अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।

स्वास्थ्य सेवाओं के महानिदेशक (डीजीएचएस) ने पेटेंट, डिजाइन और ट्रेड माक्र्स के महानियंत्रक को पत्र लिखकर समानता या भ्रम की घटनाओं की पहचान के लिए फार्मास्युटिकल उत्पादों से जुड़े ट्रेडमार्क की निगरानी बढ़ाने की मांग की है।