अम्बाला। जीएसटी लगने के बाद दवा व्यवसाई रिटेलर हो या होलसेलर, अवधि समाप्त दवाओं को कंपनी से वापस कर मूल्य की अन्य औषधि लेने पर दवा निर्माता इकाइयां कुछ प्रतिशत लाभांश काट रही हैं, अत: दवा व्यवसाइयों को इसका नुकसान हो रहा है। मामला राष्ट्रीय कार्यकारिणी एआईओसीडी के सदन पटल पर समय-समय पर होने वाली राष्ट्रीय तथा राज्य स्तरीय बैठक में खूब उठा है। इसका संज्ञान लेते हुए राष्ट्रीय कार्यालय ने अलग-अलग माध्यमों से वित्त मंत्री केंद्र सरकार को अवधि समाप्त दवा को समान मूल्य की अन्य दवाओं में तब्दील करवाने या लैस करवाने में एड़ी-चोटी का जोर लगाना पड़ रहा है। अभी तक सफलता हाथ नहीं आईएआईओसीडी के राष्ट्रीय महासचिव रोजाना वित्त मंत्री पीयूष गोयल को ईमेल, ट्विटर, पत्राचार के माध्यम से दवा व्यवसाइयों की इस मुख्य मांग का हल निकालने के प्रयास करते रहते हैं परंतु सफलता दूर की कौड़ी लग रही है।

केंद्रीय वित्त मंत्री की जीएसटी टीम ने दवा संगठन के सदस्यों से अलग-अलग समय पर उनकी समस्याओं का हल निकालने के लिए कई बैठकें की। टीम ने अवधि समाप्त दवाओं को शत प्रतिशत वापसी का जो हल एआईओसीडी के नेताओं को सुझाया, वह उनके समझ से परे लग रहा है। जबकि जीएसटी काउंसिल ने स्पष्ट करते हुए कहा कि यदि कोई दवा का मूल्य थोक दवा विक्रेता को सौ रुपए पड़ता है तो 12 फीसदी जीएसटी लगाकर वह 112 का पत्ता है और वैट के समय स्टॉक इन हैंड का 12 फीसदी ही दवा व्यवसाइयों ने सरकार से निर्माताओं के माध्यम बनाकर रिकवर कर लिया। अत: वह दवाई थोक दवा विक्रेता को सौ रुपए की ही पड़ी।

अब यदि कोई दवा अवधि समाप्त हो जाती है तो सरकार का कहना है कि रिकवरी थोक दवा विक्रेता ने निर्माता के माध्यम से जीएसटी में छूट के नाम पर पहले ले ली। जीएसटी काउंसिल का कहना है कि एक्सपायर दवा को कंपनी, तभी शत-प्रतिशत कर सकती है, जब थोक दवा विक्रेता द्वारा अर्जित की गई छूट 12 फीसदी को वह दवा निर्माता कंपनी के माध्यम से जीएसटी काउंसिल को वापस करते हैं क्योंकि जिस पर 12 फीसदी का लाभांश ले चुके हैं। अब वह दवा एक्सपायर हो गई तो उस पर उन्हें शत प्रतिशत वापसी करवाना सरकार को 12 फीसदी की चपत होगी, जो सरकार को मान्य नहीं है। अत: मौजूदा समय में जो एक्सपायर दवाएं निर्माता के पटल पर आ रही हैं वह वेट के समय की निर्माण की हुई हैं।

जीएसटी को लागू हुए अभी 1 साल की अवधि हुई है और दवाओं की अवधि समाप्त तिथि 2 या 2 वर्ष से ऊपर होती है। कुछ दवाओं पर यह अवधि 1 वर्ष भी होती है परंतु जुलाई 17 से अस्तित्व में आए जीएसटी में निर्माण हुई दवाई की एक्सपायरी अभी दवा निर्माताओं के समक्ष नहीं आ रही। जो पचड़ा एक्सपायर दवाइयों का चल रहा है, वह पुराने निर्माण के समय का है। अत: दवा व्यवसाइयों व संगठन को यह गणित स्वत: समझना चाहिए। फिर भी केंद्रीय वित्त मंत्री ने बिहार में हुई जीएसटी काउंसिल व व्यवसाइयों की बैठक में आश्वासन दिया कि एक्सपायरी दवाओं पर शीघ्र ही कोई निर्णय लिया जाएगा। यह भविष्य के गर्भ में है कि निर्णय दवा व्यवसाइयों के हक में आता है या काउंसिल समय अवधि पार कर मुद्दे को खत्म करना चाहती है।