जालन्धर
सरकार के नए आदेश के मुताबिक अब दवा व्यापार के लिए लाईसेंस लेने के लिए आवेदक को तीन हजार की बजाए तीस हजार रुपए खर्च करने पड़ेंगे। लाईसेंस रिन्यूल की फीस भी इसी तर्ज पर चार्ज की जाएगी। लाईसेंस की डुप्लीकेट कापी की फीस पांच सौ से बढ़ाकर पांच हजार, और लेट फीस की सूरत में भी पांच सौ रुपए से बढक़र फीस पांच हजार फीस का प्रावधान किया गया है।
सरकारी फीस वृद्धि के कारण दवा व्यापारी काफी मुश्किल में फंसते नजर आ रहे हैं। फिलहाल सरकार आदेश के मुताबिक उपरोक्त शुल्क 45 दिन के बाद लागू हो जाएंगे। इस बीच उक्त आदेश के खिलाफ आपतियों पर भी विचार विमर्श किया जाएगा। यदि सरकारी शुल्क लागू हो जाते हैं तो दवा व्यापारियों को जो किपहले से ही कई समस्याओं से घिरे हुए हैं। एक नयी मुसीबत उनके राह में उनका स्वागत करने के लिए खड़ी है।
आन लाईन सिस्टम शुरू होने के कारण खुदरा दवा विक्रेताओं को रजिस्ट्रेशन संबन्धी मुशिकलों का सामना करना पड़ रहा है। जिससे उनका व्यापार प्रभावित हो रहा है। क्योंकि खुदरा दवा की दुकानों की गिनती फार्मासिस्टों की गिनती के मुकाबले काफी ज्यादा है। इस सूरत में कई दुकानें बन्द होने के कागार पर हैं।
दूसरी समस्या जिसमें थोक दवा विक्रेता कूद रहे हैं। वह फार्मासिस्ट की अनिवार्यता है। इस सूरत में कोई नया लाईसेन्स नहीं बन सकता। सन् 2000 तक लाईसेंस की फीस 80 रुपए तक थी। उसके बाद 2001 में यह फीस बढक़र 3000 हो गई। अब यह फीस दस गुणा बढक़र 30,000 करते हुए सरकार ने दवा विक्रेताओं के लिए नई मुसीबत खड़ी कर दी है। जिसका नतीजा यही लगता है कि अधिकांश दवा विक्रेता सरकारी नीतियों की भेंट चढ़ते हुए अपना कारोबार समेटने के लिए विवश हो जाएंगे। इसलिए सरकार को दवा व्यपारियों की खातिर सोच समझ कर फैसला लेना चाहिए ताकि वे अपना काम शान्तिपूर्वक कर सकें।