लखनऊ। उत्तर प्रदेश सरकार ने अस्पतालों में दवाओं के बार-बार घटिया साबित होने और इसे वापस मंगाने के झंझट को एक ही बार में खत्म करने का निर्णय लिया है। अब यूपी मेडिकल सप्लाइज कारपोरेशन क्वालिटी टेस्ट की कसौटी पर परखने के बाद ही अस्पतालों को दवाएं जारी करेगा।
कारपोरेशन की प्रबंध निदेशक श्रुति सिंह के अनुसार पहले दवाओं की पर्याप्त व समुचित जांच की जाएगी, तब ही इसे अस्पतालों में भेजा जाएगा। नई व्यवस्था एक महीने में लागू हो जाएगी। मेडिकल सप्लाइज कारपोरेशन द्वारा खरीदी गई दवाओं के कई नमूने तीन-चार महीनों में फेल हुए हैैं। दो बार आइ ड्रॉप खराब निकली है, जबकि पिछले महीने एंटीफंगल टैबलेट खराब निकलने के बाद प्रदेश भर में इसका वितरण रोकने के निर्देश दिए गए थे। कारपोरेशन की प्रबंध निदेशक ने बताया कि इसे देखते हुए दवाओं को लेकर अब ऐसा काम होने जा रहा है, जो प्रदेश में पहले कभी नहीं हुआ। दवा कंपनियों से आने वाला स्टॉक चाहे मेडिकल सप्लाइज कारपोरेशन के गोदाम में उतरे या जिलों में सीएमओ के पास पहुंचे, इसे पहले की तरह यूं ही जारी नहीं किया जा सकेगा। दवाओं की जांच के लिए कारपोरेशन ने मान्यता प्राप्त प्रयोगशालाओं को अनुबंधित किया है। इन्हीं लैब में दवाओं को क्वालिटी टेस्टिंग की परीक्षा पास करनी होगी। लैब से हरी झंडी मिलने पर ही दवाएं अस्पतालों की ओर बढ़ेंगी। प्रबंध निदेशक ने बताया कि केवल शुरुआती जांच से भी तसल्ली नहीं की जाएगी। इसके लिए भी लगातार अस्पतालों में यह जांच कराई जाएगी कि किसी दवा की शेल्फ लाइफ यदि दो वर्ष है तो एक साल में कहीं दवा की गुणवत्ता कम तो नहीं हो गई है। प्रबंध निदेशक ने बताया कि चार महीने में की गई जांच से दवा कंपनियों का भी रिकॉर्ड भी सामने आ रहा है कि किसकी गुणवत्ता कैसी है। उन्होंने बताया कि इसी आधार पर भविष्य में दवा कंपनियों को मौका दिया जाएगा, जिसका बड़ा असर दवा आपूर्ति में नजर आएगा। मेडिकल सप्लाइज कारपोरेशन की एमडी बताती हैैं कि कारपोरेशन बनने से पहले अस्पतालों को भेजी जाने वाली दवाओं की जांच नहीं होती थी। कारपोरेशन ने बीतेे कुछ महीनों से दवाओं का वितरण शुरू कराने के साथ ही जांच शुरू कराई तो गुणवत्ता के मामले सामने आने लगे। इसे देखते हुए अब अस्पतालों में भेजे जाने से पहले शत-प्रतिशत दवा की जांच कराई जाएगी।