दिल्ली हाईकोर्ट ने नीति आयोग समिति को निर्देश दिया कि मजबूत एकीकृत चिकित्सा नीति को बनाने की प्रक्रिया में तेजी लायी जाये। मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा की अध्यक्षता वाली पीठ ने संपूर्ण चिकित्सा प्रणाली बनाने का अनुरोध करती एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए यह निर्देश देते हुए टिप्पणी की कि मौजूदा अलग-अलग चिकित्सा पद्धतियों जैसे ऐलोपैथी, आयुर्वेद और होमियोपैथी में ‘ज्ञान का खजाना’ है और इस पर विचार करने की जरूरत है कि क्या उन्हें एकीकृत किया जा सकता है।

मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा की अध्यक्षता और न्यायमूर्ति संजीव नरुला वाली पीठ ने कहा कि सभी अलग-अलग शाखाएं हैं। वहां ज्ञान का खजाना है अगर इसे एकीकृत किया जा सके। पीठ ने कहा, मानव शरीर की मौलिक समझ आयुर्वेद और ऐलोपैथी में अलग-अलग है। यदि ज्ञान को एकीकृत किया जा सकता है, तो क्यों नहीं? केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसीटर जनरल चेतन शर्मा ने कहा कि इस तरह का एकीकरण ‘‘हर मायने में सर्वश्रेष्ठ’’ होगा।

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अदालत ने सुनवाई के दौरान ये स्पष्ट किया गया कि एकीकरण पर विशेषज्ञों द्वारा फैसला किया जाना चाहिए। अदालत ने कहा, यह आपके या मेरे द्वारा तय करने के लिए नहीं है। यह विशेषज्ञों के लिए है कि वे फैसला करें। कोर्ट ने कहा कि समिति से अनुरोध किया जाता है कि वह प्रक्रिया में तेजी लाए।’’ कोर्ट ने इसके साथ ही मेडिको लीगल एक्शन ग्रुप और योग गुरु रामदेव के पंतजलि अनुसंधान संस्थान को सुनवाई में पक्षकार बनाया।