नई दिल्ली। दुर्लभ रोग की दवाओं और इलाज पर कस्टम ड्यूटी व चार्ज नहीं लगाया जाएगा। यह आदेश दिल्ली हाईकोर्ट ने जारी किए हैं। जस्टिस प्रतिभा एम सिंह ने डचेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी और हंटर सिंड्रोम जैसी दुर्लभ बीमारियों से पीडि़त बच्चों के इलाज से संबंधित याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह आदेश पारित किए। याचिकाओं में मरीजों के लिए मुफ्त इलाज की मांग की गई, जोकि बहुत महंगा है।
गजट अधिसूचना में है प्रावधान
जस्टिस प्रतिभा एम सिंह ने सीमा शुल्क अधिनियम, 1962 के तहत पिछले साल 29 मार्च को केंद्रीय वित्त मंत्रालय द्वारा जारी गजट अधिसूचना पर ध्यान दिया। इसमें दुर्लभ बीमारियों के इलाज के लिए इस्तेमाल की जाने वाली विशेष मेडिकल प्रयोजनों के लिए दवाएं या भोजन शामिल हैं। अदालत ने कहा कि यह स्पष्ट किया जाता है कि दुर्लभ बीमारियों के लिए दवाओं और उपचारों पर कस्टम ड्यूटी और चार्ज नहीं लगाया जाएगा।
सीबीआईसी को आदेश सूचित करने को कहा
उन्होंने कहा कि जब भी दुर्लभ बीमारियों के संबंध में दवाएं लाई जाती हैं तो कस्टम अधिकारी यह सुनिश्चित करेंगे कि उन्हें शीघ्रता से मंजूरी दे दी जाए। यह तय करने में कोई अनावश्यक बाधा न हो कि वे संबंधित अस्पताल तक पहुंच जाएं। वर्तमान आदेश को रजिस्ट्री और सीजीएससी कीर्तिमान सिंह के माध्यम से अनुपालन के लिए केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर और कस्टम बोर्ड (सीबीआईसी) को सूचित किया जाए।
एम्स दिल्ली को भी दिए गए थे निर्देश
बीते साल नवंबर में अदालत ने अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) को दुर्लभ बीमारियों वाले बच्चों के लिए दवाओं की खरीद की प्रक्रिया शुरू करने का निर्देश दिया था। इनके लिए मूल्यांकन पूरा हो चुका है और जो फंड के अनुसार इलाज के लिए उपयुक्त हैं। अदालत ने राष्ट्रीय दुर्लभ रोग समिति को निर्देश दिया कि वह आनुवांशिक दुर्लभ बीमारी स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी के लिए दवाओं का निर्माण और विपणन करने वाली कंपनियों के साथ विचार-विमर्श करे। ताकि उचित मूल्य पर दवाओं की खरीद की संभावना का पता लगाया जा सके।
गौरतलब है कि जस्टिस सिंह ने पिछले साल मई में पांच सदस्यीय समिति का गठन किया था। इसका मकसद दुर्लभ बीमारियों के इलाज के लिए राष्ट्रीय नीति, 2017 को कुशल तरीके से लागू किया जाना था। इससे यह भी सुनिश्चित किया जा सके कि इसका लाभ अंतिम रोगियों तक पहुंच पाए।