चंडीगढ़। सरकारी अस्पतालों और डिस्पेंसरियों में स्वास्थ्य सेवाएं सुधारने के लिए सरकार ने नई कवायद शुरू की है। इसके तहत चार जिलों के सभी विशेषज्ञ डॉक्टरों, दंत चिकित्सक और पैरामेडिकल स्टाफ को महीने में सात दिन नजदीकी जिलों के गांवों में स्थित डिस्पेंसरियों व अस्पतालों में जाकर मरीजों का इलाज करना होगा। ऐसा नहीं करने वाले डाक्टरों को अनुपस्थित मानते हुए विभागीय कार्रवाई की जाएगी, जबकि कम मरीज देखने का असर पदोन्नति और वेतन वृद्धि पर पड़ेगा। स्वास्थ्य विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव आरआर जोवल ने इस संबंध में फरीदाबाद, गुरुग्राम, रोहतक व पंचकूला के सिविल सर्जनों को निर्देश जारी कर दिए हैं।
उधर, राज्य सरकार के इस फैसले का डॉक्टर विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि इससे डॉक्टरों पर दोहरे काम का बोझ पड़ेगा। सरकार के इस फैसले के तहत फरीदाबाद के डाक्टरों को पलवल, गुरुग्राम के मेडिकल व पैरा मेडिकल स्टाफ को नूंह, रोहतक के डॉक्टरों को चरखी दादरी और पंचकूला के स्टाफ को सीएचसी रायपुररानी, कालका व मोरनी में महीने में सात दिन तक मरीजों का उपचार करना होगा। जिन अस्पतालों या डिस्पेंसरियों में ड्यूटी लगेगी, वहां के सिविल सर्जन तय करेंगे कि इन डाक्टरों व स्टाफ की उन्हें कहां जरूरत है।
चारों जिलों के सिविल सर्जन को निर्देश दिया गया है कि सभी डॉक्टरों और पैरा मेडिकल स्टाफ की हर महीने एक सप्ताह के लिए रोटेशन के तहत ड्यूटी निर्धारित कर 15 दिन में रिपोर्ट निदेशालय भेजें। अगर किसी वजह से डॉक्टर या पैरा मेडिकल स्टाफ की ड्यूटी नहीं लग पाती है तो उसे अगले सप्ताह पूरा किया जाए। डेपुटेशन पर चल रहे स्टाफ को भी अपनी ड्यूटी हर हाल में पूरी करनी होगी। ड्यूटी रोस्टर सिविल सर्जन और स्वास्थ्य महानिदेशक के पास रहेगा। वहीं संबंधित अस्पतालों में जाने के लिए डॉक्टरों को विभाग यात्रा भत्ता देगा। हरियाणा सिविल मेडिकल सर्विस एसोसिएशन नए नियम के विरोध में उतर आई है। एसोसिएशन के प्रदेश प्रधान डा. जसबीर परमार ने कहा कि जल्द ही वह इस संबंध में स्वास्थ्य सचिव और महानिदेशक से मुलाकात कर विरोध दर्ज कराएंगे। डॉक्टरों का तर्क है कि फिलहाल चारों जिलों में डॉक्टर और पैरा मेडिकल स्टाफ की तैनाती कुछ हद तक संतोषजनक है।