नई दिल्ली: नई दवाओं के मूल्य निर्धारण तरीके में बदलाव करने पर विचार करने के साथ-साथ केंद्र सरकार यह भी ध्यान रख रही है कि फार्मा उद्योग बिना वजह सरकारी नीति से प्रभावित न हो। सरकार का कहना है कि वह मौजूदा मूल्य निर्धारण के तरीके को समाप्त करने के लिए दवा उद्योगों के साथ मिलकर बीच का रास्ता निकालेगी। दवा मूल्य नियंत्रण आदेश-2013 (डीपीसीओ) में परिभाषित नई दवा की कीमत तय करना इसमे मुख्यतौर पर शामिल है। अभी मूल्य निर्धारण का जो तरीका है, उस वजह से नई दवा बाजार में उतारने के लिए वक्त लग रहा है।
रसायन और उर्वरक मंत्रालय मामले के हितधारकों के साथ मुद्दों पर बातचीत जारी है। किसी भी प्रस्ताव को अंतिम रूप देने से पहले सभी संबंधित वर्गों के साथ जरूरी सलाह की जाएगी। केंद्र सरकार का स्पष्ट कहना हैकि गरीबों तक आवश्यक दवाओं की पहुंच और उपलब्धता सुनिश्चित करने के साथ-साथ दवा उद्योग के विकास का पूरा ध्यान रखा जाएगा। दवा मूल्य नियंत्रण आदेश-2013 (डीपीसीओ) की समीक्षा के दौरान सभी बातों पर विचार हो रहा है।
मंत्रालय ने साफ कहा कि मूल्य नियंत्रण को कठोर बनाने संबंधी धारणा भ्रामक एवं अनुचित है। डीपीसीओ प्रावधानों के तहत केवल उन दवाओं की कीमतें तय हैं जो आवश्यक दवाओं की राष्ट्रीय सूची में शामिल हैं। बाजार में इन दवाओं की संख्या छह हजार दवाओं में से लगभग 850 है। मूल्य आधार पर इनकी संख्या कुल दवा बाजार का करीब 17 प्रतिशत है। आवश्यक दवाओं की सूची पर विशेषज्ञ समिति द्वारा लगातार आकलन किया जा रहा है।
दवा मूल्य निर्धारण में बदलावों को लेकर मंत्रालय जिन बिंदुओं पर विचार कर रहा है, वे नीचे इस प्रकार हैं…
1. गैर अनुसूचित घोषित दवाइयों को आगे के वर्ष के लिए उनके अधिकतम मूल्य तय किए बिना गैर अनुसूचित दवा समझना।
2. अधिकतम मूल्य से भी ज्यादा में बेची जाने वाली दवाओं को सीमित करना।
3. आवश्यक दवाइयों की राष्ट्रीय सूची के संशोधन के आधार पर सूची में जोड़-घटाव को शामिल करते हुए अनुसूचित दवाओं की सूची संशोधित करना, ताकि केवल आवश्यक दवाओं की सूची में शामिल नई दवाओं के मूल्य एनपीपीए द्वारा निर्धारित हों।
4. नकारात्मक थोक मूल्य सूचकांक के मामले में अनुसूचित दवाइयों की मूल्य सीमा में परिवर्तन का अधिकार एनपीपीए को देना।
5. अन्य विषयों में संस्थानों को सीधे सप्लाई की जा रही अनुसूचित दवाओं के मूल्य निर्धारण के लिए संस्थागत मूल्य डाटा संबंधी प्रावधान शामिल हैं ।