नई दिल्ली। मूल्य नियंत्रण के दायरे में आने वाली दवाओं के दाम नए सिरे से तय किए जाएंगे। इसके लिए नया फॉर्मूला बनाया जा रहा है। माना जा रहा है कि मौजूदा फॉर्मूले से दवाओं के दाम तेजी से बढ़े हैं। दवाओं को मूल्य नियंत्रण के दायरे में लाने का मकसद भी नाकाम हो रहा है। गौरतलब है कि दवाओं के दाम तय करने का मौजूदा सिस्टम 2013 के ड्रग प्राइस कंट्रोल ऑर्डर के जरिए वजूद में आया था। इसका मकसद आम जनता को वाजिब दाम पर जरूरी दवाएं मुहैया कराना था। लेकिन इस फॉर्मूले का इसे बनाए जाने के समय से ही विरोध हो रहा है। कई नागरिक संगठन और एनजीओ सरकार से लगातार इसे बदलने की मांग कर रहे हैं। इस फॉर्मूले के अनुसार मूल्य नियंत्रण के दायरे में आने वाली किसी भी कंपनी की दवा की बाजार में एक फीसदी हिस्सेदारी जरूरी है। ऐसी दवा को बनाने वाली हर कंपनी की दवा के दामों का औसत निकाला जाता है और फिर उसके हिसाब से कीमत तय की जाती है। हर साल इसमें 10 फीसदी की बढ़ोतरी की जा सकती है। इससे दवाओं के दाम तेजी से बढ़ रहे हैं। पहले दवा की लागत के हिसाब से उसका दाम तय किया जाता था। सूत्रों का कहना है कि सरकार एक बार फिर दवा की लागत के हिसाब से उसके दाम तय करने पर विचार कर रही है। अगर ऐसा होता है तो मूल्य नियंत्रण के दायरे में आने वाली दवाओं के दाम कम हो सकते हैं।