नई दिल्ली। देश में निमोनिया के कारण हर 39 सेकंड में एक बच्चा मौत का शिकार बन रहा है। वर्ष 2018 में पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मौत के मामले में भारत दूसरे स्थान पर है। संयुक्त राष्ट्र की एक नई रिपोर्ट में यह बात सामने आई है। पहले स्थान पर नाईजीरिया का नाम है। इससे भारत में पिछले वर्ष 1.27 लाख बच्चों की मौत हुई है। इसके बावजूद वैश्विक संक्रामक रोग शोध खर्च में से महज तीन फीसदी ही इस पर खर्च किया जाता है। संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) ने कहा कि गत वर्ष वैश्विक स्तर पर निमोनिया के कारण पांच वर्ष से कम उम्र के आठ लाख से अधिक बच्चों की मौत हुई या फिर यूं कहें कि हर 39 सेकंड में एक बच्चे की मौत हुई। इनका अशिक्षा और गरीबी से भी संबंध है।
विशेषज्ञों का कहना है कि वायु प्रदूषण, दूषित पेयजल, स्वास्थ्य देखभाल में कमी, पोषण आहार की कमी, अशिक्षा और गरीबी जैसे कारकों से भी निमोनिया का जोखिम बढ़ता है। निमोनिया के कारण मरने वाले बच्चों में अधिकतर की उम्र दो वर्ष से कम थी और 1.53 लाख बच्चों की मौत जन्म के पहले महीने में ही हो गई। अभी यह लगभग भूला जा चुका है कि निमोनिया भी एक महामारी है। यह रोग अब सुसाध्य है और इससे बचाव भी संभव है। जागरुकता लाने के लिए अगले वर्ष जनवरी में स्पेन में ‘ग्लोबल फोरम ऑन चाइल्डहुड निमोनिया’ पर गोष्ठी होगी, जिसमें विश्वभर के नेता शामिल होंगे।