पूरे देश में पश्चिम बंगाल एक ऐसा राज्य है जहां सबसे अधिक मात्रा में एंटीबायोटिक दवाओं का इस्तेमाल किया जाता है। राज्य स्वास्थ्य विभाग द्वारा किए गए एक अध्ययन में यह चौंकाने वाली बात सामने आई है। यह दावा किसी और का नहीं बल्कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के स्वास्थ्य विभाग के प्रभारी प्रमुख सचिव एनएस नारायण स्वरूप निगम का है।
कोलकाता के साल्ट लेक स्थित स्वास्थ्य विभाग के मुख्यालय स्वास्थ्य भवन में आयोजित ‘सेप्सिस रोकथाम जागरूकता कार्यक्रम’ सेमिनार में संबोधित करते हुए श्री निगम ने कहा, ”एंटीबायोटिक्स की खपत के मामले में हम देश में सबसे आगे हैं। हमारे राज्य में एंटीबायोटिक दवाओं के उपयोग का विश्लेषण करते समय हमें यह बहुत महत्वपूर्ण डेटा मिला।
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राज्य में बड़ी संख्या में विशेष श्रेणी और सामान्य एंटीबायोटिक दवाओं की प्रतिरोध दर 60 प्रतिशत से अधिक है। स्वास्थ्य विभाग के माइक्रोबायोलॉजी विशेषज्ञों की एक टीम ने पिछले एक साल के दौरान सरकारी अस्पतालों के मरीजों के 32,000 से अधिक कल्चर और सेंसिटिविटी परीक्षणों की सकारात्मक रिपोर्ट का विश्लेषण किया और निष्कर्ष निकाले।
जांच रिपोर्ट स्वास्थ्य विभाग के माइक्रोबियल आइडेंटिफिकेशन, एंटी-माइक्रोबियल रेजिस्टेंस डिटेक्शन सिस्टम के पोर्टल पर अपलोड की जाती है। श्री निगम ने कहा कि डॉक्टरों के अतिरिक्त जो यहां बैठे हैं, आम जनता भी डॉक्टर है क्योंकि वे अपनी मर्जी से एंटीबायोटिक्स का सेवन करते हैं। उदाहरण के लिए, वे एंटीबायोटिक दवाओं की खुराक दो दिन या तीन दिन के लिए बढ़ा देते हैं। यह सरासर बकवास है। एंटीबायोटिक दवाओं के इस बेलगाम उपयोग को रोकना होगा।
उन्होंने कहा कि हमें यह जांचना होगा कि बड़े निजी अस्पताल एंटी-माइक्रोबियल नियंत्रण प्रोटोकॉल का पालन करते हैं या नहीं। निजी अस्पतालों को उस समय क्रिटिकल केयर यूनिट (सीसीयू) में प्रोटोकॉल लागू करना होगा जब प्रति दिन इलाज के लिए शुल्क 40,000 रुपये है। चिकित्सा शिक्षा निदेशक (डीएमई) और स्वास्थ्य सेवाओं के निदेशक (डीएचएस) को प्रोटोकॉल के कार्यान्वयन को सत्यापित करने के लिए अस्पतालों में माइक्रोबायोलॉजी इकाइयों का दौरा करना चाहिए।