नई दिल्ली। फार्मा कंपनियां ब्रांड के नाम पर ज्यादातर दवाएं पांच गुणा अधिक दाम पर बेच रही हैं। मसलन, बुखार में इस्तेमाल होने वाले एक्लोफिनैक और पैरासिटामॉल सॉल्ट की जो टैबलेट जेनेरिक में मात्र 5.70 रुपए की है, उसे ब्रांड के नाम पर 23-30 रुपए में बेचा जा रहा है। इसी तरह, एक्लोफिनैक के 3 रुपए 84 पैसे की टैबलेट के लिए 32.50 तक वसूले जाते हंै। कैंसर आदि की दवाओं के रेट में तो चार से पांच गुना ज्यादा का अंतर है। सरकार ने खुद जन औषधि केंद्र की वेबसाइट पर जेनेरिक और ब्रांडेड दवाओं के दाम में अंतर की सूची जारी की है। केंद्र सरकार ने जब पिछले दिनों 328 फिक्स डोज कंबीनेशन यानी एफडीसी दवाओं पर रोक लगाई तो इस पर काफी बवाल मचा। कुछ दवा निर्माता कंपनियां कोर्ट भी पहुंच गईं और सुप्रीम कोर्ट ने सैरीडॉन समेत तीन दवाओं पर लगे प्रतिबंध को हटा दिया। कंपनियां एफडीसी या अन्य ब्रांडेड दवाओं के लिए सामान्य से कहीं ज्यादा पैसे वसूलती हैं। सरकार इसके मुकाबले जन औषधि केंद्र के जरिये जेनेरिक दवाओं को प्रमोट करने में लगी है। जेनेरिक यानी वो दवाइयां जो किसी ब्रांड की तो नहीं हैं, लेकिन सॉल्ट और फायदे ब्रांडेड जितने ही हैं, लेकिन जेनेरिक और ब्रांडेड दवाइयों के दाम में जमीन-आसमान का अंतर है।