रोहतक। हरियाणा में इस वक्त प्राइवेट सेक्टर के अस्पतालों का बोलबाला है। हर जिले में कई नए और पुराने बड़े अस्पताल बन चुके है, जो अच्छा खासा कमा भी रहे है। नियमों को ताक पर रखकर इन अस्पतालों में काम हो रहा है, जो मरीजों के साथ एक तरीके का धोखा है।

इन अस्पतालों में चल रही केमिस्ट शॉप में भी बड़े कारोबारियों से डील हो रही है। अब 60-60 लाख रूपए की पगड़ी पहुंचना आम हो गया है। इसमें खास बात ये है कि निजी अस्पतालों में बिना बिल के सारा काम हो रहा है।

निजी अस्पतालों में डायगनोस्टिक सिस्टम में भी बड़ा झोलमाल है। जिन केमिस्ट की दुकानों का लाइसैंस लिया गया है वे निर्धारित 180 वर्ग मीटर के दायरे से कम हो चुकी हैं। तो जिन फार्मासिस्टों के नाम से लाइसैंस लिया गया है वो यहां कभी दिखाई नहीं देते। छापेमारी होती है तो काम पर गए है, ये बता दिया जाता है।

प्रदेश के निजी अस्पतालों का हाल ऐसा है कि कुछ अस्पतालों में डिस्पेंसिंग के नाम पर दवाइयां बेची जा रही हैं। एमसीआई के नार्मस के मुताबिक कोई भी डाक्टर जीवन रक्षक दवाइयों के अलावा अन्य दवाइयां अपने नाम से नहीं खरीद सकता। लेकिन अस्पताल के नाम से बिल बनवाए जा रहे हैं। दुख की बात है कि ये सब हो रहा है और देखने व जांच करने वाला कोई नहीं है।

जिस विभाग को जांच करनी चाहिए, उस संबंधित विभाग एफडीए के पास स्टाफ ही नहीं है। बहुत से अस्पताल तो ऐसे हैं जिनके डाक्टरों ने फार्मा कंपनियों से जानबूझकर प्रोपगेंडा दवा बनवाई है जो केवल वहीं मिल सकती है वह भी महंगे दामों पर। इन सब के बीच कोई पीस रहा है तो वो गरीब मरीज है, जिसको इलाज कराने के लिए निजी अस्पताल आना ही पड़ रहा है क्योंकि सरकारी अस्पताल के हालात कैसे है ये सभी जानते है।