चंडीगढ़। पीजीआई के डॉक्टरों ने अध्ययन कर अग्नाशय (पैंक्रियाज) का ऑपरेशन किए बिना गंभीर रोगियों की जान बचाने का तरीका ढूंढ लिया है। हालांकि अभी 50 फीसदी ही मरीजों को इसका लाभ मिलेगा, क्योंकि उनकी स्थिति को देखकर ही चिकित्सक इलाज की इस प्रक्रिया को बाकी मरीजों पर लागू करेंगे। पीजीआई का दावा है कि यह सर्जिकल गैस्ट्रोइंट्रोलाजी का विश्व का पहला सफल अध्ययन है। यह अध्ययन पीजीआई के सर्जिकल गैस्ट्रोइंट्रोलाजी विभाग के प्रमुख प्रो. डॉ. राजेश गुप्ता ने किया है।
ब्लॉकेज हटाती है स्ट्रेप्टोकिनेज दवा
स्ट्रेप्टोकिनेज दवा मुख्य रूप से ब्लॉकेज को हटाने का काम करती है। यानी खून को पिघलाने का कार्य करती है। इस दवा का प्रयोग आज तक इस तरह किसी भी बीमारी में किसी संस्थान ने नहीं किया था। अग्नाशय रोग में ट्यूब डालकर इलाज किया जाता है। चिकित्सकों का कहना है कि कुछ मरीजों का पहले इलाज हो जाता था तो कुछ का नहीं। इससे मरीज की मौत भी हो जाती है। यह रोग गॉल ब्लेडर में पथरी व शराब के कारण होता है। चिकित्सकों का कहना है कि 50 फीसदी मरीजों को इसका सीधा लाभ मिल जाएगा, उनकी मौतें नहीं हो सकेंगी।
1960 में हुआ था यह प्रयोग
स्ट्रेप्टोकिनेज का उपयोग 1960 के दशक की शुरुआत से पल्मोनरी थ्रोम्बोम्बोलिज्म, मायोकार्डियल इंफेक्शन, डीप वेन थ्रॉम्बोसिस में इंट्रा-वास्कुलर थ्रॉम्बोसिस के विघटन के लिए किया गया है। सर्जिकल गैस्ट्रोइंट्रोलाजी विभाग ने मेडिकल गैस्ट्रोइंट्रोलाजी विभाग के साथ मिलकर 2013 में स्ट्रेप्टोकिनेस का ऑफ-लेबल उपयोग शुरू किया। इसका पहला चरण भी सफल रहा। उसके बाद आगे का अध्ययन जारी रखा। डॉ. राजेश गुप्ता की टीम में प्रोफेसर सुरिंदर राणा, प्रोफेसर मनदीप कांग, डॉ. उज्जवल गोरसी, प्रोफेसर रिताम्ब्रा नाडा आदि रहे।
स्ट्रेप्टोकिनेज दवा का प्रयोग छाती से बलगम को निकालते समय किया जाता है। यह प्रक्रिया ऑपरेशन के जरिए ही होती है। वहां दवा कारगर होते देख इसका प्रयोग डॉ. राजेश गुप्ता व उनकी टीम ने इन्फेक्टिव पैंक्रियाटिक मैक्रोसिस रोगियों के लिए शुरू किया। पीजीआई में एक रोगी ऐसा आया, जिसके जीने की संभावना बहुत कम थी। उसके परिजनों को चिकित्सकों ने उसके हालात बताए और ऑपरेशन के लिए राजी कर लिया। उसका अग्नाशय निकाला गया और उसके दो हिस्से किए गए। इन दोनों को अलग-अलग जार में डालकर दवा का प्रयोग किया गया तो अग्नाशय के जिस हिस्से में ट्यूमर था वह दवा के प्रभाव से गलकर खत्म हो गया। उसके बाद दवा का प्रयोग कर मरीज को बचा लिया गया। वहीं, अन्य मरीजों को भी इस दवा और इलाज की विधि से ठीक किया गया। ऐसे लगभग 100 से अधिक मरीजों पर पीजीआई ने अध्ययन कर लिया है।