वाराणसी. बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के आयुर्वेद संकाय के वैज्ञानिकों ने इसकी ऐसी दवा तैयार की है जिससे भूलने की बीमारी का सटीक इलाज संभव है। ऐसा वैज्ञानिकों का दावा है।
86 मरीजों पर हुआ शोध
ये दवा आयुर्वेद संकाय के काय चिकित्सा विभाग के वैज्ञानिकों (वैद्यों) ने बनाई है। उनका दावा है कि देश में पहली बार इस तरह की दवा बनाई गई है जिससे भूलने की बीमारी का अंत हो सकता है।
आयुर्वेद संकाय के मानस चिकित्सा इकाई के प्रोफेसर डॉ जेएस त्रिपाठी तथा उनकी एक पूर्व शोध छात्रा डॉ. रिचा त्रिपाठी ने इस दवा को बनाया है। उनका कहना है कि भूलने की गंभीर बीमारी से पीड़ित 86 मरीजों को ये दवा दी गई जिसमें 40 से 85 वर्ष तक के मरीज शामिल रहे।
प्रो त्रिपाठी के मुताबिक शोध के दौरान पाया गया कि दवा सभी मरीजों पर कारगर है। शोध अभी जारी है।
चूहों पर कारगर रही है दवा
प्रो त्रिपाठी के मुताबिक इंसान से पहले इस दवा का प्रयोग चूहों पर किया गया। उस दौरान देखने को मिला कि उनकी दिमागी हालत में शनै-शनै सुधार हो रहा है।
डॉ ऋचा त्रिपाठी ये दवा है ब्राह्मी घृत
प्रो त्रिपाठी के अनुसार ये एक तरह का पाउडर है, जिसे देसी घी में मिला कर बनाया जाता है। इसे “ब्राह्मी घृत” कहते हैं। डॉ. त्रिपाठी के अनुसार यह दवा मरीजों को प्राणुदान काल अर्थात खाली पेट ही दी जा सकती है।
पंचकर्म से भी संभव है इलाज
डॉ. त्रिपाठी का कहना है कि इस भूलने की बीमारी यानी अल्जाइमर डिमेंसिया के इलाज की एक और विधि भी अपनाई जा सकती है। इसके तहत पंचकर्म प्रक्रिया अनाई जाती है। इससे दिमाग की कोशिकाओं की जटिलता समाप्त हो जाती है। इसे भूलने की बीमारी से गंभीर रूप से पीड़ित मरीजों को महीने भर तक दिया जाता है।