भोपाल। प्रदेश में हर साल स्वैच्छिक रक्तदान के जरिए 3 लाख यूनिट ब्लड मिल रहा है। इसमें करीबन 70 हजार यूनिट मेडिकल कॉलेजों और 2 लाख 30 हजार यूनिट जिला अस्पतालों के ब्लड बैंक में आता है। मेडिकल कॉलेजों में मरीजों से प्रति यूनिट 600 रुपए अतिरिक्त लिए जा रहे हैं। वहीं, जिला अस्पतालों में 800 रुपए ज्यादा लिए जा रहे हैं। इस तरह मेडिकल कॉलेज और जिला अस्पताल मिलकर 22 करोड़ 60 लाख रुपए प्रतिवर्ष कमा रहे हैं। इससे मरीजों की जेब पर अनावश्यक डाका पड़ रहा है। अस्पतालों में एक यूनिट खून के लिए मरीज से सरकारी ब्लड बैंक में 850 से 1050 रुपए लिए जा रहे हैं, जबकि इसमें जांच और ब्लड बैग मिलाकर सिर्फ 250 रुपए का खर्च है। यह पैसे प्रोसेसिंग चार्ज के नाम पर लिए जाते हंै। बिजली का बिल, कर्मचारियों की सेलरी, मशीनों की मरम्मत और स्टेशनरी का खर्च भी मरीजों से ही वसूला जा रहा है। दरअसल, डोनर का ब्लड लेकर मरीज को चढ़ाने के पहले पांच टेस्ट किए जाते हैं। ये टेस्ट रैपिड किट से किए जाते हैं। पांचों टेस्ट की किट करीबन 200 रुपए में आती है। इसमें भी करीब 25 फीसदी किट मप्र स्टेट एड्स कंट्रोल सोसायटी (एमपीसैक) द्वारा सरकारी अस्पतालों को मुफ्त दी जाती है। इसके अलावा डोनर और मरीज के ब्लड की क्रॉस मैचिंग की जाती है। इसमें कोई खर्च नहीं होता।