जमशेदपुर (झारखण्ड)। सरकारी अस्पताल महात्मा गांधी मेमोरियल (एमजीएम) मेडिकल कॉलेज सह अस्पताल में एक मरीज इलाज के अभाव में तड़प-तड़प कर मर गया। इसकी शिकायत करने जब परिजन ड्यूटी पर तैनात डॉक्टर के पास पहुंचे तो वह इमरजेंसी विभाग ही छोड़ कर भाग निकले। इस दौरान अफरातफरी का माहौल उत्पन्न हो गया।
इमरजेंसी विभाग में आने वाले गंभीर मरीज जख्म से तड़प रहे थे, लेकिन उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं था। इस दौरान मरीज के परिजनों का रो-रोकर बुरा हाल था। वे गुहार लगा रहे थे कि कोई तो मेरे मरीज को बचा ले, लेकिन जिम्मेदार डॉक्टर की लापरवाही के आगे वह बेबस थे। शाम पांच से रात आठ बजे तक इमरजेंसी विभाग में एक भी डॉक्टर नहीं था। सीनियर चिकित्सक तो गायब थे ही, जूनियर व इंटर्न भी गायब थे। इससे इमरजेंसी विभाग में भर्ती मरीज व उनके परिजनों में आक्रोश बढ़ गया। वे हंगामा करने लगे। उनका कहना था कि इलाज नहीं कर सकते तो बंद कर दो अस्पताल। यह नारा लगाते-लगाते परिजन अस्पताल के मेन गेट तक पहुंच गए और गेट को बंद कर दिया। इससे स्थिति और भी बिगड़ गई। इसे देखते हुए पुलिस दल-बल के साथ पहुंची लेकिन वह भी मूकदर्शक बनी रही। कारण कि मरीजों का विरोध लाजिमी था। पूरे अस्पताल में करीब 500 से अधिक मरीज भर्ती थे लेकिन वहां पर एक भी डॉक्टर मौजूद नहीं था। घटना की सूचना मिलने पर मंत्री सरयू राय भी एमजीएम अस्पताल पहुंचे। मंत्री को देखते ही पूरी भीड़ ने उन्हें घेर लिया और अपनी-अपनी समस्याएं गिनाने लगे। मृतक तुषार मुखी की पत्नी सीता मुखी ने मंत्री को बताया कि इलाज के अभाव में उसका पूरा परिवार उजड़ गया। पेट में मामूली दर्द होने पर पति तुषार मुखी को शाम करीब पांच बजे भर्ती कराया गया और छह बजे उनकी मौत हो गई। पति को इमरजेंसी विभाग में बेड भी नसीब नहीं हुआ। वह फर्श पर ही दर्द से तड़पता रहा। इसे लेकर वह कई बार डॉक्टर को बोली, लेकिन वह एक बार भी देखने नहीं आया। यहां तक की जब पति की सांस रुक गई तो भी डॉक्टर को बुलाने गई, लेकिन वह इमरजेंसी विभाग छोड़ कर भाग गया। सरयू राय ने कहा कि घटना की जानकारी मैंने मुख्य सचिव व स्वास्थ्य को दी है। उन्होंने कहा कि अस्पताल चलाने में अगर सरकार असमर्थ है तो मरीजों को निजी अस्पतालों में रेफर कर देना चाहिए और उसी को पैसा देना चाहिए।