गोरखपुर। ब्लड प्रेशर और मनोरोग में दी जाने वाली नींद की दवा के नमूने जांच रिपोर्ट में फेल पाए जाने से दवा बाजार में हडक़ंप मचा है। गंभीर मरीजों को दी जाने वाली यह दवा मानकों पर खरी नहीं उतरी। ड्रग इंस्पेक्टर संदीप कुमार के मुताबिक, हर माह औसतन 10 सैंपल लिए जा रहे हैं। चार महीने के दौरान 40 सैंपल जांच के लिए भेजे गए। इनमें से कुछ की ही रिपोर्ट आई है। औषधि नियंत्रण विभाग से भेजे गए दवाओं के 30 में से 15 सैंपल ठीक पाए गए लेकिन 15 नमूने अधोमानक और मिस ब्रांडेड पाए गए।
गौरतलब है कि पानीपत की कंपनी में बनी एल्प्राजोलाम 0.5 मिलीग्राम टेबलेट का सैंपल अगस्त में फेल निकला था। मैक्सवेल फार्मास्यूटिकल्स इस दवा को एलमाक्स नाम से बेचती है। इसके साथ ही गोरेपन की क्रीम मेलाज और मेमोपी जांच में मिस ब्रांडेड निकली थीं। एंटीएलर्जिक टेबलेट प्रीवेंट एच भी मिस ब्रांडेड मिला था। एल्प्राजोलाम फार्मूले वाली दोनों दवा में साल्ट 86 प्रतिशत ही निकला। इस पर औषधि विभाग ने हरिद्वार की इस्टर्न फार्मा, गांधीनगर गुजरात की कंपनी टटसन फार्मा को नोटिस भेजा है। ड्रग इंस्पेक्टर संदीप कुमार ने बताया कि जवाब मिलने के बाद आगे की कार्रवाई की जाएगी।
आईएमए के अध्यक्ष डॉ. बीबी गुप्ता की मानें तो अधोमानक दवाएं सेहत को नुकसान पहुंचाती हैं। नुकसान किस तरह का होगा, यह उस दवा की प्रकृति और मिलावट पर निर्भर करता। खासकर ग्रामीण मरीजों में अधोमानक दवाओं का साइड इफेक्ट ज्यादा देखा गया है। ब्लड प्रेशर की दवा अगर अधोमानक होगी तो मरीज को इसका लाभ नहीं होगा उल्टे ब्लड प्रेशर बेकाबू होने से मरीज की जान जोखिम में पड़ सकती है। कैंसर से लेकर अन्य बीमारियों के मरीजों की जीवनरक्षक दवाएं अगर अधोमानक होंगी तो मरीज को इनका लाभ मिलने की जगह नुकसान ही होगा। कई बार दवाओं में मिलावट से गंभीर दुष्प्रभाव भी सामने आते हैं। डॉ. बीबी गुप्ता ने बताया कि समय-समय पर आने वाली ड्रग कंट्रोलर की रिपोर्ट पढक़र पता चला है कि गांवों में स्थितियां काफी खराब हैं। देहात क्षेत्रों में करीब 20 से 30 फीसदी अधोमानक दवाएं बिकती हैं। हालांकि, शहर में स्थिति थोड़ी बेहतर है। इसका बड़ा कारण गांवों के मुकाबले शहरों में लोगों का ज्यादा पढ़ा-लिखा और जागरूक होना है।