जयपुर

एसएमएस अस्पताल में निशुल्क दवा योजना के तहत आई करोड़ों रुपए की दवाएं जला दी गईं। वर्ष 2014 में अस्पताल की ओर से जुकाम, बुखार की साधारण दवाओं से लेकर एंटीबायोटिक की 9465 किलोग्राम दवाएं नष्ट कराई गई। करीब 10 टन दवाओं में जुकाम, बुखार, एंटीबायोटिक की ओरल और इंजेक्टेबल दवा के अलावा न्यूरो, मेडिसिन की दवाएं थी। अस्पताल की ओर से इन दवाओं को नष्ट तो करा दिया लेकिन किन दवाओं की मात्रा कितनी थी, यह जानकारी अस्पताल के पास पास नहीं है। जब अस्पताल प्रबंधन और प्रशासनिक अधिकारियों से बात की तो सामने आया कि उस समय (वर्ष 2011 से 2014 तक) डिमांड भेजी जाती रही और खपत कम रही। स्टॉक रखने की समस्या होने लगी तो अस्पताल प्रशासन ने कमेटी बनाई और दवाओं को नष्ट करा दिया।
जानकारी के मुताबिक, अप्रैल-2011 से अप्रैल-2012 तक 9 करोड़ 97 लाख 29 हजार की दवाएं खरीदी गई। वर्ष 2012-2013 में यह दोगुनी से भी अधिक 25 करोड़ 27 लाख 53 हजार और वर्ष 2013-2014 में 29 करोड़ 63 लाख 31 हजार रु. से अधिक की दवाएं खरीदी गईं। इनको ड्रग वेयर हाउस से डीडीसी व फिर वहां से वार्डों और इमरजेंसी में भिजवाया गया। दवाएं भिजवाने के बाद यदि कोई दवा एक्सपायर हुई तो उसकी कोई डिटेल नहीं ली गई। दवाएं एकत्र होती गईं और उन्हें बाद में एकसाथ नष्ट करा दिया गया।
एसएमएस अस्पताल के अधीक्षक ने बताया कि डिमांड अस्पताल से ही भेजी जाती है, किसने भेजी और क्या कारण थे, इसका पता किया जाएगा। मामले की उच्च स्तरीय जांच कराई जाएगी। वर्ष 2011 से ही सभी प्रकार के दस्तावेज मांगे जाएंगे। यह संवेदनशील मामला है, ऐसे में ऑडिट भी कराई जाएगी। दवाओं की आपूर्ति और खपत और एक्सपायरी की पूरा पता किया जाएगा।
अस्पताल की ओर से कुल 9465 किलोग्राम दवाइयां नष्ट कराई गईं। 2014 में 30 सितंबर, एक अक्टूबर, 10 अक्टूबर और 11 अक्टूबर को ट्रकों में भरकर दवाइयों को बायो-मेडिकल डंपिंग डिपो ले जाया गया। करीब 10 टन दवाओं में गोलियां, इंजेक्शन और अन्य कई महत्वपूर्ण दवाएं थीं।
जानकारी के अनुसार इन दवाइयों की कीमत करोड़ों रुपए थी। डीडीसी में सप्लाई के बाद कभी इनके एक्सपायरी की डिटेल ही नहीं ली गई। हालांकि आरएमएससीएल के पास सभी दवाओं की एक्सपायरी डेट होती है और एक्सपायरी से तीन महीने पहले अस्पताल से सूचना मांगी जाती है। ताकि इन दवाओं को अन्यत्र भेजकर काम में लिया जा सके।