धार (मप्र)। डॉक्टर्स मरीजों को लाइकोपेन समेत 187 दवाइयां नहीं लिख सकेंगे। इन उत्पादों पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण ने विनियमावली 2016 को 1 जून 2018 से लागू कर दिया है, जिसमें हार्मोन, स्टेरायड, साइकोट्रोपिक ड्रग्स के विक्रय को नियंत्रित किया जा सकेगा। उत्पादक भी खाद्य अनुपूरक को औषधि का पर्याय बताकर नहीं बेच सकेंगे। किसी भी प्रकार का स्वास्थ्य संबंधी दावा करने के लिए पूर्वानुमति आवश्यक होगी। कैंसर की गठान के विकास में रक्त वाहिकाओं की भूमिका होती है। राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय अध्ययन के बाद लाइकोपेन नामक कलर जो टमाटर में प्रमुखता से पाया जाता है, को कैंसर के उपचार के उपयोग में लाया जाता है। नियमों के अभाव में इसे बच्चों बल्कि गर्भवती महिलाओं को दिया जाता रहा है। इसमें दावा किया जाता रहा कि गर्भस्थ शिशु का स्वास्थ्य अच्छा रहेगा व उसका विकास होगा। जबकि अनुसंधान में पाया कि दो मिली ग्राम लाइकोपेन गर्भवती महिलाओं को प्रतिदिन दिया जाता है तो गर्भस्थ शिशु पर इसका विपरीत प्रभाव पड़ता है।
असुरक्षित खाद्य के मामले में कम से कम सात साल का अधिकतम कारावास का प्रावधान किया है। खाद्य सुरक्षा अधिनियम में उत्पाद के प्रत्येक बिलिंग स्थान के संचालन कर्ता, मालिक पार्टनर, डायरेक्टर, लेबर पर प्रदर्शित मार्केटिंग कंपनी के संचालक या प्रोपाइटर सभी को लेबल अवहेलना के लिए पार्टी बनाया जा सकता है। धार के खाद्य सुरक्षा अधिकारी संजीव मिश्रा ने बताया कि उत्पादों पर नया एक्ट लागू हुआ है। जो 1 जून से प्रभावी हो गया है। जिसमें 187 उत्पादों को चिकित्सकीय उपयोग के लिए प्रतिबंधित किया है।  कोलेस्ट्रॉल कम करने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली रेस्वेट्राल ओमेगा फेटी एसिड के अलावा केरेटिनाइट, लुटिन, लाइकोपेन, गुलोकासामिन या कॉन्ड्राइट्स का सम्मिश्रण, डायबिटीज को ठीक करने वाली जिमनेमा, नींद के लिए हाईपेरीकम परफोरेटम, सोयाबीन डाइडेजिन, ब्रेस्ट गठान रोकने के लिए जेनेस्टिन, हृदय रोग के उपचार की दवा ओमेगा फेटीऐसिडस डोकोसा हेक्जाइनाइक एसिड समेत 187 उत्पादों को चिकित्सकीय उपयोग के लिए प्रतिबंधित किया गया है।