कोरोना वायरस की चुनौती का सामना करने में हर भारतीय नागरिक घरों में रह कर अपना योगदान दे रहा है, लेकिन लॉकडाउन ने उन युवा माता-पिताओं की फिक्र बढ़ा दी है जिनके नवजातों का टीकाकरण होना है।  बच्चों को खसरा समेत कई रोकी जा सकने वाली बीमारियों (प्रीवेन्टेबल डिसीज) से बचाने के लिए बच्चे को जन्म के बाद विभिन्न अवधियों में ये टीके (वैक्सीन) लगाए जाते हैं। जिन बच्चों को मार्च और अप्रैल में टीके दिए जाने थे, उनका सारा शेड्यूल गड़बड़ा गया है। कई पैरेंट्स का कहना है कि  “हमें बच्चे के वैक्सीनेशन को लेकर दिक्कत आ रही है।

बच्चों को  बीते महीने निमोनिया और इस महीने मीसल्स (खसरा) के टीके दिए जाने थे।  हमें नहीं समझ आ रहा कि इस स्थिति का कैसे सामना करें।  अगर बच्चे को समय से ये टीके नहीं दिए गए तो बाद में कोई समस्या पेश न आए। ” माता पिता अब तक सोच रहे थे कि 14 अप्रैल के बाद ये टीके लगवा लेंगे, लेकिन लॉकडाउन के 3 मई तक बढ़ने के बाद उनका इंतज़ार और लम्बा हो गया। उनका कहना था कि अगर कोई होम सर्विस दी जा सकती है तो वो बड़ी राहत होगी।  वो घर आकर टीके दे सकते हैं।  अगर ऐसे ही वक्त गुजरता रहा तो ये कितना गंभीर हो सकता है। एक स्वास्थ्य रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया भर में 10 करोड़ ऐसे बच्चे हैं जिन्हें खसरा, डिप्थीरिया जैसी बीमारियों का खतरा है क्योंकि कई देशों ने कोरोनावायरस की चुनौती की वजह से अपने राष्ट्रीय टीकाकरण; अभियानों को स्थगित कर दिया है।

भारत में बड़े पैमाने पर टीकाकरण अभियान चलते रहे हैं. लेकिन विश्व स्वास्थ्य संगठन के दिशानिर्देशों के मुताबिक इन पर अस्थाई ब्रेक समय की जरूरत है।