मुंबई। कई विदेशी फार्मा कंपनियां भारत से अपना करोबार जल्द ही बंद करने वाली हैं। कंपनियों की ओर से इस तरह के संकेत मिलने लगे हैं।
स्विस फार्मा कंपनी नोवार्टिस ने रिव्यू किया शुरू
स्विस की बड़ी फार्मा कंपनी नोवार्टिस ने घोषणा की है कि उसने अपनी कंपनी की स्ट्रेटजिक रिव्यू शुरू कर दी है। इसके आधार पर वह जल्द ही भारत में दवा बनाना बंद कर सकती है। इस घोषणा के तहत कुछ चीजों को सूचीबद्ध किया गया है। इसमें सहायक कंपनी में इसकी हिस्सेदारी का आकलन किया जा रहा है।
यूके की कंपनी एस्ट्राजेनेका ने भी की घोषणा
करीब तीन महीने पहले यूके की बड़ी कंपनी एस्ट्राजेनेका ने भी घोषणा की थी कि वह ग्लोबल स्ट्रेटजिक रिव्यू के आधार पर भारत में दवा बनाने की कंपनी से बाहर हो सकती है। कंपनियों की ओर से ये घोषणाएं उस पैटर्न को फॉलो करती हैं जिसमें फाइजर, सनोफी, एस्ट्राजेनेका और जीएसके जैसी फार्मा दिग्गजों ने पिछले कुछ सालों में विनिर्माण, बिक्री और विपणन जैसे मुख्य कार्यों में जनशक्ति कम कर दी है। इन्होंने परिचालन में कटौती की है।
कई फार्मा हैं सौ साल पुरानी
उपरोक्त दवा कंपनियों में से कुछ की भारत में अच्छी-खासी विरासत है। कई तो इनमें सौ साल पुरानी है। भारतीय बाजार में कुछ समय पहले ही ये बढ़त हासिल करने की होड़ में थी। इसके बावजूद अपना प्रदर्शन कम करने की इनकी योजना हैरान करने वाली है।ं
ये हैं मुख्य कारण
बाहरी फार्मा के भारत से कारोबार समेटने के पीछे कई मुख्य कारण बताए जा रहे हैं। गौरतलब है कि देश कुछ सबसे गंभीर स्वास्थ्य चुनौतियां भी हैं। बढ़ती प्रतिस्पर्धा, उच्च परिचालन लागत और कम व्यवहार्य व्यवसाय ने बहुराष्ट्रीय कंपनियों को अपनी रणनीतियों पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर किया है। वे मुख्य दक्षताओं पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं।
भारत में विनिर्माण की पिछली रणनीति से वे लाइसेंसिंग और विपणन समझौतों में परिवर्तित हो गए हैं। इन सालों में नोवार्टिस, रोश, एली लिली और फाइजर ने प्रमुख उपचारों के लिए टोरेंट, ल्यूपिन, सिप्ला और ग्लेनमार्क जैसी घरेलू कंपनियों के साथ समझौता किया है।
रणनीति का कर रही पुनर्मूल्यांकन
नोवार्टिस की बात करें तो कंपनी ने हाल ही में अपने उच्च-विकास वाले नेत्र विज्ञान ब्रांडों को 1,000 करोड़ रुपये से ज्यादा में मुंबई स्थित जेबी केमिकल्स को बेच दिया है। नोवार्टिस इंडिया के पूर्व उपाध्यक्ष रंजीत शाहनी का कहना है कि नियामकीय बाधाओं, आईपीआर चुनौतियों और अपने भारतीय व्यवसायों से लाभ/मूल्य उत्पन्न करने के दबाव का सामना करते हुए, अधिकांश बहुराष्ट्रीय कंपनियां भारतीय बाजार के लिए अपनी रणनीति का पुनर्मूल्यांकन कर रही हैं।