चित्तौडगढ़ – राजस्थान
सरकारी अस्पतालों में मरीजों के उपचार के लिए उपलब्ध कराई जा रही नि:शुल्क दवाइयां नीम-हकीम द्वारा अपने क्लीनिकों पर बेचे जाने का सनसनीखेज मामला सामने आया है। जांच का विषय यह है कि आखिर कौनसा नेटवर्क नि:शुल्क दवाइयों की सप्लाई नीम-हकीमों को कर रहा है। उप-नगरीय बस्ती चंदेरिया स्थित संजीवनी क्लीनिक पर यह दवाइयां पाई गई हैं। इस क्लिनिक पर बेक्लोमेथासोन इनहेलेशन आईपी 200 एमसीजी/डोज के पैकेट मिले हैं। इन पर साफ लिखा है कि नोट फोर सेल, नि:शुल्क वितरण के लिए। सरकारी अस्पतालों में रोगियों को नि: शुल्क वितरित की जाने वाली यह दवा नीम-हकीम तक पहुंचने का जरिया क्या है, इसका जवाब किसी के पास नहीं। दवा के साथ स्टेरॉयड की वाइल्स भी रखी हुई थी, जिसका उपयोग ये नीम-हकीम अमूमन हर ड्रिप और इंजेक्शन के लिए इसलिए करते हैं, ताकि मरीज जल्दी ठीक हो जाए और उसे इंजेक्शन रियेक्शन भी नहीं हो। इस क्लिनिक पर यौन शक्तिबढ़ाने के काम आने वाले तिले के पैकेट्स भी रखे मिले। क्लिनिक का संचालक संजय बिश्वास एक युवती के भरोसे क्लीनिक खुला छोडक़र कहीं गया हुआ था। मोबाइल पर संपर्क करने पर उसने बताया कि वह आयुर्वेद की परीक्षा देने कोटा गया हुआ है।
ऐसे चंदेरिया से आगे बोरदा गांव में एक दुकान में प्रताप कुमार की ओर से अवैध रूप से क्लीनिक का संचालन किया जा रहा है। इस क्लीनिक पर ऐसी दवाइयां रखी हुई थी, जो अमूमन चिकित्सक की पर्ची के बिना किसी को उपलब्ध नहीं हो पाती। क्लीनिक पर डेक्सामेथासोन की सात-आठ वॉयल रखी हुई थी। इसके अलावा वहां यौन क्षमता बढ़ाने के काम आने वाली गोलियां भी रखी हुई थी, जो चिकित्सक के परामर्श के बिना नहीं दी जा सकती।
गोपालपुरा और अन्य ग्रामीण इलाकों में तो वाकायदा नीम-हकीमों के क्लिनिक पर ग्रामीणों के खाते चलते हैं। नीम-हकीम इनका उपचार करते हैं और फिर राशि संबंधित के खाते में दर्ज कर देते हैं। ऐसे में ग्रामीणों का लालच यह रहता है कि उनका उपचार उधारगी में हो जाता है।
जांच का विषय यह भी है कि सरकार की ओर से इतनी सुविधा मिलने के बावजूद ग्रामीण अंचल के लोग नीम-हकीमों के यहां पैसे देकर उपचार कराने को विवश क्यों है। चिकित्सा अधिकारी का कहना है कि सरकार की ओर से उपलब्ध कराई जा रही नि: शुल्क दवाइयां नीम-हकीमों के क्लीनिक पर नहीं बिक सकती। यदि कहीं ऐसा हो रहा है तो इसकी जांच करवाई जाएगी।