झांसी। कोरोना काल में हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन के कच्चे माल का दाम पांच से 90 हजार रुपये पहुंच गया है। यानी सीधे 18 गुना का इजाफा हुआ है। ऐसा हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन की खपत बढ़ने के कारण हुआ है। मलेरिया के उपचार में इस्तेमाल होने वाली यह दवा कोरोना दौर में काफी बिकी। यहां तक कि अमेरिका तक ने भारत से इसकी काफी डोज खरीदी थी। तो वहीं जिला केमिस्ट एसोसिएशन- नितिन मोदी, सचिव ने बताया कि कोविड के पहले हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन का कच्चा माल पांच हजार रुपये किलो मिलता था। कोरोना काल में इस दवा की मांग एकदम से बढ़ गई। अमेरिका समेत कई देशों ने भारत से दवा की आपूर्ति करने की मांग की।

इसमें उपयोग होने वाले एक्टिव फार्मास्युटिकल्स एंग्रिडिएंट्स के दाम बढ़ने से अब हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन का कच्चा माल 90 हजार रुपये किलो मिल रहा है। बताया गया कि कोविड के पहले तक भारत को हर साल हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन की 2.4 करोड़ टैबलेट की जरूरत होती थी। भारत में सालाना 40 मीट्रिक टन कच्चा माल से हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन बनाने की क्षमता थी। इससे 200 मिलीग्राम की 20 करोड़ टैबलेट बनाई गईं। हालांकि, अब इसे बढ़ाया जा रहा है। कई देशों ने कोविड-19 के रोगियों के उपचार के लिए इस दवा का इस्तेमाल किया। एजिथ्रोमाइसिन कोरोना वारयस के इलाज में हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन के साथ दी जाने वाली दूसरी डोज रही। इसके दाम देश में कोरोना की शुरूआत होते ही फरवरी 2020 में दोगुने हो गए थे।

हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन मलेरिया की पुरानी दवा है। यह ऑटोइम्यून डिसीज जैसे रियूमेटॉइड आर्थराइटिस और लूपस के इलाज में भी इस्तेमाल होती है। भारत इस दवा का सबसे बड़ा उत्पादक और निर्यातक है। जानकारों का कहना है कि दुनिया को होने वाली सप्लाई का 70 फीसदी भारत बनाता है। कोरोना काल में अचानक से इस दवा की मांग बढ़ गई। अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत से हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन दवा को लेकर निर्यात बैन हटाने की पहले अपील की। इसके बाद भारत ने अमेरिका समेत कई देशों को दवा की खेप भी भेजी। दवा की बढ़ती मांग के बीच हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन को बनाने में इस्तेमाल होने वाले एक्टिव फार्मास्युटिकल्स एंग्रिडिएंट्स (एपीआई) के दाम सबसे ज्यादा बढ़े हैं। इस कारण दवा का कच्चा माल अब 90 हजार रुपये किलो पहुंच गया है।