कोटा। राजस्थान में कोटा शहर के एक सरकारी अस्पताल में कुछ घंटे के अंतराल पर 9 नवजात बच्चों की मौत की खबर से कोहराम मच गया। यहां 8 घंटे में 9 नवजात शिशुओं की मौत हो गई। इनमें 5 शिशुओं की मौत बुधवार को हुई जबकि 4 बच्चों ने गुरुवार को तथा शुक्रवार को अल सुबह एक नवजात ने दम तोड़ा। जिला कलक्टर उज्जवल राठौड़ ने अस्पताल प्रशासन ने कारणों की रिपोर्ट मांगी है। वहीं स्वास्थ्य मंत्री रघु शर्मा ने जांच का आदेश दिया है और इस संबंध में अस्पताल से एक रिपोर्ट मांगी है। जिसके बाद अस्पताल प्रशासन ने जांच कमेटी बनाई है।
मिली जानकारी के अनुसार काेटा का जे के लाेन अस्पताल एक बार फिर सुर्खियाें में है। बुधवार रात 2 बजे से शुक्रवार सुबह 03 :30 बजे के बीच महज 24 घंटे के अंदर दस नवजातों में दम तोड़ दिया। ये सभी नवजात 4 से 5 दिन के थे। परिजनों का आरोप है कि बच्चों की हालत बिगड़ने पर हम मदद के लिए गिड़गिड़ाते रहे, लेकिन नाइट ड्यूटी स्टाफ सोता रहा। बार-बार बुलाने पर भी डॉक्टर नहीं आए और उल्टा हमें डांटकर भगा दिया गया।
वहीं, चिकित्सा मंत्री रघु शर्मा का कहना है कि 4 बच्चे को मृत ही लाए गए थे, 3 बच्चों को जन्मजात बीमारी थी और 3 बच्चों की मौत फेफड़ों में दूध जाने के कारण हुई है। सीएमओ और हैल्थ मिनिस्टर ने पूरे मामले पर रिपोर्ट मांग ली। वहीं, शाम को संभागीय आयुक्त केसी मीणा और कलेक्टर उज्जवल राठौड़ हॉस्पिटल पहुंचे और वार्डों का निरीक्षण किया।
दोनों अफसरों ने प्रिंसिपल डाॅ. विजय सरदाना, एडिशनल प्रिंसिपल डाॅ. राकेश शर्मा, अधीक्षक डाॅ. एससी दुलारा, एचओडी डाॅ. एएल बैरवा के साथ मीटिंग की और सभी पहलुओं पर चर्चा कर जरूरी निर्देश दिए। चौंकाने वाली बात ये है कि इसी अस्पताल में पिछले साल दिसंबर में 48 घंटे के अंदर 10 नवजातों ने दम तोड़ा था और पूरे देश में यह बड़ी चर्चा का मुद्दा बना था। केंद्र से लेकर राज्य सरकार के मंत्रियाें, अधिकारियाें व विशेषज्ञों की टीमों ने जायजा लिया था। सभी मौतों को लेकर अस्पताल प्रबंधन ने शिशु रोग विभाग के एचओडी को विस्तृत जांच के आदेश दिए हैं।
अस्पताल सूत्रों ने बताया कि NICU में ECG मशीन का चार्जिंग सिस्टम खराब है। चार्जर खराब होने से मशीन बंद है। गायनिक वार्ड से पोर्टेबल मशीन मंगवाकर ECG किया जा रहा है। नियोनेटल इंटेसिव केयर यूनिट (NICU) में एक वार्मर पर दो से तीन नवजात थे। ऊपर चाइल्ड वार्ड के नर्सिंग रूम में कर्मी सो जाते हैं।
रात का तापमान 12 डिग्री के आसपास पहुंच गया है। यहां 98 नवजात भर्ती हैं और 71 वॉर्मर हैं। ऐसे में लगभग हर बच्चे को वॉर्मर की जरूरत है लेकिन उपलब्धता के बावजूद 11 वॉर्मर खराब पड़े हैं। पिछले साल भी वॉर्मर की कमी उजागर हुई थी। 10 दिसंबर की सभी मौतें तड़के तेज सर्दी के समय ही हुई हैं। इस समय 24 घंटे का सबसे कम तापमान होता है।
यहां नेबुलाइजर भी 56 की संख्या में आए थे, लेकिन 20 खराब हैं। इंफ्यूजन पंप का हाल भी जुदा नहीं है। 89 में से 25 अनुपयोगी हैं। कड़ाके की ठंड आने से पहले ही कोटा अस्पताल में कोताही के आलम ने परिवारों की खुशियों को उजाड़ने का जैसे इंतजाम कर दिया। अब जब इतनी मौतें हो गई, कलेक्टर से लेकर चिकित्सा मंत्री तक रिपोर्ट मांग रहे हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर ठंड होने के पहले ही जरूरी इंतजाम क्यों नहीं किए जाते।
कोटा दक्षिण विधायक संदीप शर्मा ने इसे राज्य सरकार की लापरवाही बताया। उन्होंने कहा- अस्पताल में डॉक्टर की जरूरत है। पिछली बार की घटना के बाद यहां नए चिकित्सक पदस्थ किए थे, जो तबादला करवाकर चले गए। एक प्रोफेसर और एक एसोसिएट प्रोफेसर के भरोसे अस्पताल चल रहा है। 230 बच्चों की जान का जिम्मा एक प्रोफेसर और एक एसोसिएट प्रोफेसर नहीं उठा सकता। एक ही एसोसिएट है, जबकि जरूरत के हिसाब से तीन से चार होने चाहिए।
चिकित्सा मंत्री रघु शर्मा ने कोटा में 9 शिशुओं की मौत पर स्थानीय प्राचार्य एवं प्रशासनिक अधिकारियों को तत्काल रिपोर्ट देने के निर्देश दिए। कोटा मेडिकल काॅलेज के प्राचार्य से जेके लोन में 9 शिशुओं की मृत्यु की सूचना पर रिपोर्ट तलब की। साथ ही प्रदेश के सभी मेडिकल काॅलेज प्राचार्यो को नवजात शिशुओं के उपचार के प्रति विशेष गंभीरता बरतने के निर्देश दिए हैं। बता दें कि ये सभी बच्चे स्वस्थ पैदा हुए थे और नॉर्मल थे। लेकिन अचानक सुन्न पड़ गए और मौत हाे गई।
कोटा के गांवड़ी और बूंदी जिले के कापरेन निवासी बच्चों के परिजन शवों के साथ सुबह काफी देर तक ओपीडी में ही बैठकर चीखते-चिल्लाते रहे। इनका आरोप था कि नाइट ड्यूटी स्टाफ सो जाता है, जब बच्चे की तबीयत बिगड़ी तो वे उनके पास लेकर गए, लेकिन उन्होंने नहीं सुना। उल्टा डांटकर भगा दिया। कहा- सुबह डॉक्टर आएंगे, तब बताना। जबकि कुछ समय पहले तक बच्चे नाॅर्मल थे। रात को मरने वाले पांच बच्चे गावड़ी सिविल लाइंस कोटा, कापरेन व कैथून रोड रायपुरा कोटा के थे।
जेकेलोन अस्पताल के अधीक्षक डॉ. एससी दुलारा ने बताया कि 9 बच्चों में से 3 बच्चे मृत ही शिशु रोग विभाग में पहुंचे। जबकि दो बच्चे बूंदी जिले से रैफर होकर आए थे, जिनमें से एक सेप्टिक शॉक में था और एक सेप्टिक शॉक विद रेस्पिरेट्री डिस्ट्रेस में था। तीन बच्चों में जन्मजात ब्रेन संबंधी विकृतियां थीं। एक बच्चा हाइपोग्लाइसीमिया वाली कंडीशन में था। इनमें से सात बच्चों की डिलीवरी जेकेलोन में ही हुई, जबकि दो बच्चे बूंदी से रेफर होकर आए थे। ये सभी बच्चे जन्म से 4-5 दिन उम्र के थे और इनका एसएनसीयू में इलाज चल रहा था।
जेके लोन अस्पताल में 9 नवजात बच्चों की मौत का मामला सामने आने के बाद हड़कंप मचा। कलेक्टर, कमिश्नर, चिकित्सा मंत्री और नगरीय विकास मंत्री ने अधिकारियों से फीडबैक लिया। व्यवस्थाओं और संसाधनों की जानकारी जुटाई। मंत्री जी के निर्देश के बाद कमिश्नर और कलेक्टर ने अस्पताल का दौरा कर व्यवस्थाओं का जायजा लिया। उसके बाद भी अस्पताल प्रशासन और हालात जस के तस नजर आए।