जयपुर। मेडिकल स्टोर पर फार्मासिस्ट, मरीजों को काउंसलिंग के जरिए दवा लेने का तरीका, मात्रा, साइड इफेक्ट व नशे में दुरुपयोग जैसी जानकारी देने के लिए ‘फार्मेसी प्रेक्टिस रेग्यूलेशन एक्ट-2015’ राज्य में तीन साल बाद भी लागू नहीं किया जा सका है। केंद्र सरकार ने सभी राज्यों को इस एक्ट को लागू करने के निर्देश दिए थे। एक्ट प्रभावी नहीं होने का खामियाजा मरीजों को भुगतना पड़ रहा है। काउंसलिंग देने पर फार्मासिस्ट एक्ट के तहत फीस वसूलेगा और फीस का निर्णय चिकित्सा विभाग, औषधि नियंत्रण संगठन व फार्मेसी काउंसिल को तय करना था। लेकिन आज तक इस संबंध में न तो किसी तरह की मीटिंग और न ही किसी तरह का सर्कुलर निकाला गया। इस लापरवाही पर फार्मेसी काउंसिल ऑफ इंडिया (पीसीआई) नई दिल्ली की रजिस्ट्रार कम सचिव अर्चना मुदग्ल ने राजस्थान समेत मध्यप्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, पंजाब सरकार व प्रमुख सचिव (चिकित्सा एवं स्वास्थ्य) को फिर से पत्र लिखा है। नकली दवाओं पर रोक लगाने व नमूनों की पेंडेंसी कम करने के लिए जोधपुर, उदयपुर व बीकानेर में ड्रग टेस्टिंग लैब के सिर्फ भवन ही बने हैं। मेन पावर व उपकरणों की कमी के चलते दवाओं की जांच करने वाली ये तीनों लैब शुरू नहीं हो सकी हंै। इसके चलते जयपुर की सेठी कॉलोनी स्थित एकमात्र सरकारी ड्रग टेस्टिंग लैब पर मौजूदा हालात में 6 हजार 129 दवाओं की जांच पेंडिंग है। पेंडेंसी का आलम यह है कि औषधि नियंत्रण विभाग ने जिस दवा का सैंपल लिया है, जब तक उसकी जांच रिपोर्ट आएगी, तब तक वह दवा हजारों मरीजों में बंट चुकी होती है। राज्य की पूर्ववर्ती अशोक गहलोत सरकार ने वर्ष 2012-13 में जोधपुर, उदयपुर व बीकानेर में तीन नई ड्रग टेस्टिंग लैब खोलने की घोषणा की थी। फिर से गहलोत सरकार आने से आमजन को उम्मीद है कि ये टेस्टिंग लैब जल्द शुरू होंगी। जोधपुर, उदयपुर व बीकानेर स्थित तीनों ड्रग टेस्टिंग लैब के भवन पर करीबन छह करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं। इसके अलावा एक हजार 694 लाख रुपए में जांच के उपकरणों पर खर्च होंगे। एक्सपर्ट वी.एन.वर्मा व प्रवीण कुमार के अनुसार केन्द्र सरकार ने मरीजों को दवा व इससे होने वाले साइड इफेक्ट की जानकारी देने के लिए फार्मेसी प्रेक्टिस रेग्यूलेशन बनाए हंै। नियमों के तहत ड्रग स्टोर पर रजिस्टर्ड फार्मासिस्ट आने वाले प्रिस्क्रिप्शन का रिकार्ड रखेगा। क्लीनिकल मिसयूज, ड्रग एलर्जी, ड्रग डिजीज, थेरेप्टिक डुप्लीकेशन, गलत औषधि की मात्रा या औषधि उपचार की अवधि आदि की समीक्षा करनी होगी। ड्रग स्टोर पर काम करने वाले पंजीकृत फार्मासिस्ट को एप्रिन पर नाम व मोबाइल नंबर अंकित होना चाहिए।