नई दिल्ली। सरकार ने मानव शरीर में प्रत्यारोपित होने वाले सभी तरह के इंप्लांट्स को दवा की श्रेणी में लाने की तैयारी कर ली है। इस फैसले के बाद सरकार को पेसमेकर, हार्ट वॉल्व, लेंस से लेकर आर्टिफिशियल हिप सहित करीब 400 से ज्यादा तरह के इंप्लांट्स को रेगुलेट करने का अधिकार मिल जाएगा।
  विशेषज्ञों के अनुसार इससे इन डिवाइसेज के दाम करीब 50 फीसदी तक कम हो सकते हैं। इसके लिए सरकार ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट में बदलाव करेगी। उम्मीद की जा रही है कि जनवरी माह में ही केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय इसके लिए नोटिफिकेशन जारी कर देगा। इससे सरकार के पास यह कानूनी अधिकार हो जाएगा कि सरकार इसकी क्वालिटी और कीमतों पर नियंत्रण रख सके। गौरतलब है कि सरकार इससे पहले घुटने और स्टेंट के दामों को भी नियंत्रित कर चुकी है। सरकार इन इंप्लांट्स को बनाने और बेचने के लिए लाइसेंस देगी और क्वालिटी पर अपना नियंत्रण रख सकेगी। यही नहीं, विदेशों में तैयार होने वाले इंप्लांट्स को भी यदि भारत में बेचना है तो उन्हें लाइसेंस लेना होगा। ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया डॉ ईश्वरा रेड्डी ने बताया कि इंप्लांट्स का देश में सालाना 40 से 45 हजार करोड़ रुपए का कारोबार है। अभी तक यह सरकारी नियंत्रण से बाहर है। जिसका खामियाजा मरीजों को भुगतना पड़ता है। पिछले दिनों जॉनसन एंड जॉनसन कंपनी के चार हजार से ज्यादा मरीजों को हिप प्रत्यारोपित किए गए और बाद में सभी मरीजों का हिप खराब हुआ, जिसकी वजह से कई मरीज परमानेंट फिजिकली हैंडीकैप हो गए। नए कानून के बाद ऐसी स्थिति होने की आशंका कम हो जाएगी। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के ऑर्थोपेडिक्स विभाग के प्रो.डॉ.सी.एस.यादव के अनुसार 50 से ज्यादा तरह के इम्प्लांट्स ऑर्थोपेडिक्स में इस्तेमाल होते हैं। स्पाइन रॉड लॉक की कीमत पांच से छह लाख हैं, ऐसे में इनकी कीमतों में 50 से 60 फीसदी तक कीमतों में कमी आ सकती है। यही नहीं कई अन्य ऐसे इम्प्लांट्स हैं जिनकी कीमतों में 50 फीसदी की कमी आ सकती है। खास कर विदेशी कंपनियों के इम्प्लांट्स की कीमतों में प्राइम कम होने की गुंजाइश बहुत ज्यादा है। एसोसिएशन ऑफ इंडियन मेडिकल डिवाइसेज के फोरम कोऑर्डिनेटर राजीव नाथ के अनुसार सरकार की ओर से अभी तक 23 तरह के मेडिकल डिवाइसेज को ड्रग्स की श्रेणी में लाया गया है, लेकिन अभी महज चार तरह के डिवाइसेज को प्राइस कंट्रोल के दायरे में ला पा आई है।
सरकार के इस कदम से क्वालिटी और सेफ्टी में इंपू्रवमेंट होगा। पहली बार दवाओं को नियंत्रित करने का कानून 40 वर्ष पहले बना था लेकिन अब सरकार ने मेडिकल डिवाइसेज (एमआरआई, सिटी स्कैन, एक्स-रे सहित अन्य चिकित्सीय उपकरण) को भी रेगुलेट करने की तैयारी कर ली है। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) ने इस पर ड्राफ्ट तैयार किया है। ड्राफ्ट पर सभी स्टेक होल्डर्स के साथ बैठक के बाद इस पर सरकार की ओर से कोई अंतिम निर्णय लिया जाएगा।