नई दिल्ली। एंटीबायोटिक दवाओं के असरहीन होने के पीछे अस्पतालों और दवा कारखानों से निकलने वाला कचरा मुख्य कारण बताया गया है। पर्यावरण, वन एवं जलवायु मंत्रालय का मानना है कि संभवत: एंटीबायोटिक दवा कारखानों का कचरा इन दवाओं के मानव शरीर पर असर को खत्म करने वाली प्रतिरोधक क्षमता उत्पन्न कर रहा है। इस बारे में किए शोध के हवाले से मंत्रालय ने बताया कि एंटीबायोटिक अपशिष्टों की पर्यावरण में मौजूदगी के कारण, रोगजनक तत्वों को बढ़ाने वाले सूक्ष्मजीव रोधी प्रतिरोध (एएमआर) का संवर्धन होता है। सूक्ष्मजीव रोधी प्रतिरोधक क्षमता तब उत्पन्न होती है जब सूक्ष्मजीव किसी औषधि के प्रभाव को सहन कर जीवित रह जाते हैं जबकि सामान्यत: औषधि के प्रभाव की वजह से सूक्ष्मजीव या तो नष्ट हो जाते हैं या इनकी वृद्धि रुक जाती है।
औषधि निर्माण इकाइयों या अस्पतालों से निकलने वाले अपशिष्ट का निपटान वैज्ञानिक ढंग से नहीं किये जाने पर, एंटीबायोटिक दवाओं के प्रति प्रतिरोधक क्षमता उत्पन्न करने के संभावित कारण हो सकते हैं। इसकी वजह पर्यावरण में अनुमानित निष्प्रभावी सांद्रता (पीएनईसी) से अधिक सांद्रता में एंटीबायोटिक की मौजूदगी के कारण सूक्ष्मजीव रोधी प्रतिरोधक क्षमता विकसित होना है। दवा कंपनियों और अस्पतालों से निकलने वाले हानिकारक रसायनों को पर्यावरण में घुलने से रोकने के लिये कारगर उपाय किये जा रहे हैं। इसके तहत केन्द्र और राज्यों के स्तर पर प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, दवा कारखानों से निकलने वाले दूषित जल को शोधित करने के बाद ही सिंचाई या जलशोधन संयंत्र (सीईटीपी) में इस्तेमाल की अनुमति देते हैं। इसी प्रकार दवा कारखानों और अस्पताल से निकले मेडिकल कचरे के निस्तारण के संबंध में मंत्रालय ने मानक एवं दिशानिर्देशों का पालन सुनिश्चित करने को कहा है। राज्यसभा में इस बारे में जानकारी देते हुए मंत्रालय ने बताया कि एएमआर के स्वास्थ्य पर पडऩे वाले प्रभाव की जांच करते हुए दवा कारखानों के औद्योगिक अपशिष्ट में एंटीबायोटिक्स की मौजूदगी की वजह से सूक्ष्मजीव रोधी प्रतिरोधक क्षमता उत्पन्न होने की स्थिति से निपटने के लिए राष्ट्रीय कार्ययोजना आरंभ की है। इसके लिए केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने एंटीबायोटिक अवशेषों के संबंध में दवा उद्योगों के लिए मानकों का प्रारूप भी तैयार कर लिया है।