नई दिल्ली। फार्मा पलूशन से हवा और पानी में जहर घुल रहा है। एक्सपायर (खराब) हो चुकी दवाओं और उनकी पैकिंग को लोग कचरे के साथ फेंक देते हैं। इनका सही तरह से निपटान न होने से ये दवाएं भूमिगत जल, जमीन और हवा को प्रदूषित कर रही हैं। साथ ही मेडिकल स्टोर्स और अस्पतालों में पैदा होने वाले कचरे के निपटारे के लिए भी सरकार की ओर से ठोस कानूनी इंतजाम नहीं किए गए हैं।
शोध में बताया गया है कि दवा कंपनियों से निकलने वाले रसायन और हैवी मेटल्स पानी और जमीन में जाने के बाद जल स्रोतों के जरिए आम जनता तक पहुंच रहे हैं। इससे काफी नुकसान हो रहा है क्योंकि यह हवा-पानी को जहरीला कर रहे हैं। पलूशन के बढ़ते लेवल से न केवल इंटरनल ऑर्गन पर असर पड़ता है, बल्कि आउटर पाट्र्स भी प्रभावित होते हैं। इन दिनों दिल्ली-एनसीआर में पलूशन का लेवल काफी बढ़ गया है और यह सांस के जरिए बॉडी के अंदर पहुंच रहा है। इसकी वजह से लंग्स इंफेक्शन, अस्थमा, सांस की दिक्कतें, लोअर ट्रैक इंफेक्शन, हार्ट डिजीज, ब्रेन स्ट्रोक तो होते ही हैं, आंखों में जलन, स्किन ऐलर्जी, इम्यून सिस्टम में गड़बड़ी, बाल झडऩे की समस्या भी हो सकती है। इस स्टडी के लिए खासकर हैदराबाद के दवा कंपनियों वाले इलाकों को चुना गया। स्टडी में पाया गया कि यहां पानी में लिक्विड और हैवी मेटल्स की मात्रा तय सीमा से बहुत ज्यादा थी। स्वास्थ्य कार्यकर्ता और पर्यावरणविद लंबे समय से इस संबंध में नियम बनाने की मांग कर रहे हैं। स्टडी कहती है कि यहां के पानी में हर रोज बड़ी मात्रा में दवाओं के अंश मिल रहे हैं।