नई दिल्ली: केंद्रीय प्रोक्यूरमेंट एजेंसी (सीपीए) की विफलता के बाद दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य विभाग ने दवा खरीद नीति में फिर बदलाव किया है। विभाग ने विशेष परिस्थिति में चिकित्सा अधीक्षकों को अपने स्तर पर निर्धारित मात्रा में दवा खरीद का अधिकार दिया है। इसका फायदा यह होगा कि दवा की कमी होने और सीपीए से दवा उपलब्ध कराने में देरी पर तुरंत दवा की खरीद की जा सकती है। इस बात का भी पूरा ध्यान रखा जाएगा कि अस्पताल को अपने स्तर से दवा खरीदने की ज्यादा जरूरत न पड़े क्योंकि कम समय में जेनेरिक दवाओं की खरीद मुश्किल होती है। इसलिए ब्रांडेड दवाएं ही खरीदनी पड़ती हैं। हालांकि एमआरपी पर 40 फीसद तक छूट मिलती है।
      बता दें कि अस्पतालों में दवा आपूर्ति की जिम्मेदारी सीपीए के पास है। दिल्ली में पिछले कई सालों से यह व्यवस्था लागू है।  पहले चिकित्सा अधीक्षकों को भी अधिकार था कि अस्पतालों में दवा की कमी होने पर वे अपने स्तर पर दवा खरीद सकते हैं। केजरीवाल सरकार ने आते ही दवा खरीद में होने वाले भ्रष्टाचार पर रोक लगाने की नीयत से सीपीए को मजबूत करने का फैसला लिया। इसके तहत चिकित्सा अधीक्षकों से दवा खरीद का पूरा अधिकार छीन लिया गया। ऐसे में अब तक अस्पतालों में दवा की कमी होने पर भी चिकित्सा अधीक्षक उसकी खरीद नहीं कर सकते थे। सीपीए के माध्यम से ही दवा आपूर्ति सुनिश्चित करने की व्यवस्था लागू हुई। पिछले दिनों अस्पतालों में दवाओं की किल्लत देखी गई। इस पर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कई अस्पतालों का दौरा किया। मरीजों ने उनसे दवा कमी की शिकायत की। इस पर गंभीरता से विचार करने के बाद सरकार के निर्देश पर स्वास्थ्य विभाग ने पुन: व्यवस्था शुरू की कि सीपीए द्वारा दवाओं की आपूर्ति किए जाने के बावजूद अस्पताल में दवा की कमी हो तो चिकित्सा अधीक्षक दवा खरीद सकते हैं ताकि मरीज को अस्पताल में मुफ्त दवाएं सुनिश्चित की जा सकें। दिल्ली सरकार के एक बड़े अस्पताल के निदेशक (मेडिकल) ने कहा कि अस्पताल में दवा के लिए निर्धारित बजट के 10 फीसदी हिस्से से चिकित्सा अधीक्षक दवा खरीद कर सकते हैं।