चंडीगढ़। कोरोना महामारी से लोग इस कदर डरे हुए हैं कि मेडिकल बीमा की तरफ रुख कर रहे हैं। कोरोना से लड़ रहे हरियाणा में महामारी ने सेहत पर निजी और सार्वजनिक खर्च में खासी बढ़ोतरी की नींव तैयार कर दी है। हालांकि पिछले महीने पारित हुए बजट में भी स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए आवंटित धनराशि में रिकॉर्ड इजाफा किया गया है, लेकिन स्वास्थ्य ढांचे को दुरुस्त करने के लिए विशेष पैकेज की दरकार है।
महामारी के पैर पसारने के बाद प्रदेश में स्वास्थ्य बीमा कराने का चलन बढ़ा है। पिछले एक महीने के दौरान ही स्वास्थ्य बीमा लेने वाले लोगों की संख्या करीब 20 फीसद बढ़ी है। जिस तरह सरकारी अस्पतालों में उपचाराधीन कोरोना के मरीज तेजी से ठीक हो रहे, उससे हरियाणा में दूसरे राज्यों की तुलना में बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं के दावे पर मुहर लगी है। यह बढ़ोतरी टेलीफोन पर पूछताछ कर बीमा कवर कराने वालों की दर्ज हुई है। लॉकडाउन खुलेगा तो इसमें और इजाफा होगा।इसके बावजूद स्वास्थ्य क्षेत्र में काफी कुछ किया जाना जरूरी है। हर जिले में मेडिकल अस्पताल का सपना अभी अधूरा है।
तमाम कोशिशों के बावजूद डॉक्टरों और पैरामेडिकल स्टाफ की कमी पूरी नहीं होने से सरकारी अस्पतालों का सिस्टम सुधर नहीं पाया है। यूं तो सरकारी अस्पतालों में 462 दवाइयां, 226 मेडिकल उपकरण, 121 प्रोगाम मेडिसंस, 87 डेंटल मैटीरियल और 228 माइनर सर्जरियों की मुफ्त सुविधा है। इसी तरह एक्स-रे, अल्ट्रासाउंड, ईसीजी, रेफरल परिवहन तथा इंडोर उपचार की मुफ्त सुविधा है, लेकिन सरकारी अस्पतालों में दवाओं और उपकरणों की कमी से मरीजों के लिए निजी अस्पतालों में जाने के सिवाय कोई चारा नहीं होता।प्रदेश में हर दो घंटे में कैंसर से एक मौत हो रही है। पिछले पांच साल में करीब आठ हजार नए लोग कैंसर की चपेट में आ गए। मृतकों की संख्या भी दोगुनी तक जा पहुंची। महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर, जबकि पुरुषों में फेफड़ों, पेट, खून और गले का कैंसर तेजी से बढ़ रहा है। वहीं, अगले तीन साल में कुपोषण मुक्त होने का लक्ष्य लेकर चल रहे प्रदेश में वर्तमान में 34 फीसद बच्चों का कद कम है तो 29.4 फीसद का वजन मानकों के अनुरूप नहीं। करीब 21.2 फीसद बच्चे शारीरिक कमजोरी के शिकार हैं। हालाँकि स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार पर नीति आयोग ने भी मुहर लगाई है।
पिछले पांच वर्षों में विशेषज्ञ चिकित्सक 21 फीसद बढ़े हैं। सभी जिलों में मेडिकल कॉलेज खोलने का लक्ष्य 2022 तक पूरा होने के बाद हर साल दो हजार नए डॉक्टर मिल सकेंगे। नए नॄसग कॉलेज खोले जा रहे हैं जिससे पैरामेडिकल स्टाफ की कमी दूर होगी। बच्चों के लो-बर्थ वेट, नवजात मृत्यु दर, पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु दर व मातृ मृत्यु दर में सुधार, संस्थागत डिलिवरी में इजाफा, अस्पतालों की ग्रेडिंग एवं एनएबीएच/एनक्यूएएस सत्यापन प्रमाणपत्र युक्त होना, लिंगानुपात तथा विशेषज्ञों, चिकित्सों एवं स्टॉफ की उपलब्धता सहित 23 मानकों पर उल्लेखनीय सुधार हुआ है। लेकिन इन सब के बावजूद मध्यमवर्गीय तबका मेडिकल बीमा लेकर खुद को सुरक्षित कर लेने में यकीन कर रहा है।