नवादा जिले में खून के कारोबार का पर्दाफाश होने के बाद लोग सकते में हैं। बतादे कि प्रशासन की छानबीन में यह सामने आया है कि इस काले धंधे में बकायदा संगठित गिरोह काम कर रहा है। दरअसल खून के इस काले कारोबार में शामिल माफिया का सांठगांठ अधिकारियों से रहता है। यही वजह है कि वे लोग सबकुछ देखते हुए भी आंखें बंद किये रहते हैं। एक दिन पूर्व शहर के पुरानी जेल रोड स्थित अपोलो सर्जिकल एवं यूरोलॉजी सेंटर में छापेमारी के दौरान जिन सात लोगों को मुक्त कराया गया, वे सभी मजदूर तबके के हैं। मजबूरी व बेबसी में खून बेचते हैं। मुक्त कराया गया कानपुर का दिनेश सिंह पंचर बनाने का काम करता है तो भोला साव रिक्शा चालक है।

संजय सिंह बस में कंडक्टर है। वहीं शाहिद ई-रिक्शा चलाता है। नारदीगंज का ललन मजदूरी करता है। मिल रही जानकारी के मुताबिक, पुरानी जेल रोड स्थित अपोलो सर्जिकल एवं यूरोलॉजी सेंटर में ब्लड बैंक संचालन के लिए स्वास्थ्य विभाग को बकायदा आवेदन दिया गया है। सूत्र बताते हैं कि अगर यह माजरा सामने नहीं आता तो चंद दिनों में उसे लाइसेंस निर्गत कर दिया जाता। इसके बाद तो लाल खून का काला कारोबार करने की खुली छूट ही मिल जाती। गौरतलब है कि इसी नर्सिग होम में डीडीसी वैभव चौधरी ने मंगलवार को छापेमारी कर एक कमरे में बंद खून देने पहुंचे सात लोगों को पकड़ा था। ब्लड डोनर की जगह ब्लड सेलर बन चुके युवा बताते हैं कि शहर के कई स्थानों पर वैध-अवैध तरीके से संचालित क्लीनिक में यह धंधा चल रहा है। शहर के एक लाल बिल्डिंग में जाकर भी अपना खून बेच चुके हैं। वे बताते हैं कि लाल बिल्डिंग में एक ब्लड बैंक संचालित है। जहां गरीबों के मजबूरी का फायदा उठाकर उसके शरीर से खून निकालकर चंद रुपये उसे दे दिया जाता है।