नई दिल्ली। कोरोना का कहर लगातार बढ़ता जा रहा है। तो वहीं इसके इलाज में प्रयोग होने वाली दवा की जबरदस्त तरीके से बिक्री हो रही है। दरअसल कोरोना वायरस के इलाज में इस्तेमाल होने वाली दवा रेमडेसिविर (वेकलुरी) की जबर्दस्त बिक्री हो रही है। दरअसल दवा निर्माता गिलीड साइंसेस ने बताया, इस वर्ष उसे रेमडेसिविर से अब तक लगभग 6500 करोड़ रुपए की आय हो चुकी है। बताना लाजमी है कि अमेरिका के फूड, ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) ने पिछले सप्ताह कोविड-19 के पहले उपचार के बतौर दवा को मंजूरी दी है।
साल की तीसरी तिमाही में एचआईवी की दवा बिकटर्वी के बाद रेमडेसिविर कंपनी की सबसे अधिक बिकने वाली दवा है। बतादे कि हार्वर्ड मेडिकल स्कूल में मेडिसिन के प्रोफेसर डॉ. आरोन केसेलहीम का कहना है, एफडीए की मंजूरी के कारण किसी दवा से फायदा होने की गारंटी नहीं है। डॉ आरोन और अन्य शोधकर्ताओं ने अभी हाल में गौर किया है कि पिछले दस साल में एफडीए और यूरोपीय एजेंसी द्वारा मंजूर नई दवाइयों में एक तिहाई से कम दवाइयों को दूसरे विशेषज्ञों ने फायदेमंद माना है।
गौरतलब है कि मार्च, अप्रैल में जब डॉक्टरों के पास इलाज के पर्याप्त विकल्प नहीं थे तब रेमडेसिविर को उम्मीद की किरण माना गया था। छह माह बाद यह उत्साह खत्म हो गया। सरकार के एक बड़े ट्रायल में पता लगा कि दवा के कारण मरीज जल्दी स्वस्थ होते हैं। किसी भी अध्ययन ने नहीं दर्शाया कि दवा के कारण वायरस से मृत्यु दर बहुत कम हुई है। एफडीए की मंजूरी से कुछ दिन पहले विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक बड़ी स्टडी में पाया गया कि रेमडेसिविर से अस्पताल में भर्ती मरीजों को कोई फायदा नहीं हुआ।
हालांकि एफडीए द्वारा दवा को पूरी मंजूरी देने के फैसले से कई विशेषज्ञ असहमत हैं। कंपनी अब डॉक्टरों और मरीजों के बीच दवा की मार्केटिंग कर सकेगी। विशेषज्ञों का कहना है, रेमडेसिविर के लिए एजेंसी की स्वीकृति की जरूरत नहीं थी क्योंकि यह कोविड-19 का साधारण उपचार है। उन्होंने, सवाल उठाया है, दवा बनाने में सरकार की महत्वपूर्ण भूमिका है। इसलिए क्या गिलीड को उससे अरबों रुपए कमाने का अधिकार है। मेमोरियल स्लोन केटरिंग कैंसर सेंटर में स्वास्थ्य नीति के डायरेक्टर डॉ. पीटर बेच ने कहा, यह मंजूरी अनुचित है। बहुत कमजोर ट्रायल के आधार पर दवा को हरी झंडी दी गई है।