जयपुर
प्रदेश के सरकारी अस्पताल डॉक्टरों की भारी कमी से जूझ रहे है,  वहीं चिकित्सा शिक्षा विभाग ने सरकारी मेडिकल कॉलेजों में कार्यरत करीब 300 नॉन क्लिनिकल डॉक्टरों को निजी प्रैक्टिस करने की अनुमति दे दी है। इससे माइक्रबोयोलॉजी, पैथोलॉजी, एनोटोमी, फिजियोलॉजी सहित कुछ अन्य विभागों के डॉक्टर जो अभी तक सिर्फ मेडिकल कॉलेज में शिक्षण कार्य करते थे, अब उनकी कमाई की राह आसान हो गई है।
चिकित्सा शिक्षा विभाग ने यह गौर करना उचित नहीं समझा कि स्वास्थ्य विभाग के अधीन सैंकड़ों छोटे सरकारी अस्पताल और स्वास्थ्य केंद्र एक डॉक्टर के भरोसे हैं और उनके अवकाश पर जाने की स्थिति में इन अस्पतालों पर ताला लग जाता है। नॉन क्लिनिकल भी एमबीबीएस डॉक्टर-पैथोलॉजी, माइक्रोबायोलॉजी सहित कुछ अन्य विभागों से जुड़े डॉक्टर मरीजों का इलाज नहीं करते हैं। ये विभाग नॉन क्लिनिकल कहलाते हैं। इन विभागों से जुड़े डॉक्टरों के पास एमबीबीएस की डिग्री होती है। राजधानी की डिस्पेंसरी एक डॉक्टर के भरोसे-करीब 50 डिस्पेंसरियों में से करीब आधी एक डॉक्टर के भरोसे चलाए जाते हैं। इनके डॉक्टर अगर छुट्टी पर चले जाएं तो यहां ताला लटकाना पड़ता है और मरीजों को इलाज के लिए भटकना पड़ता है। हकीकत यह है कि मेडिकल कॉलेज करीब एक हजार और दूसरे सरकारी अस्पताल करीब 3000 से ज्यादा डॉक्टरों की कमी से जूझ रहे हैं।
चिकित्सा शिक्षा विभाग ग्रुप प्रथम ने आदेश जारी कर एनाटोमी, फिजियोलॉजी , बायोकैमेस्ट्री, फार्माकोलॉजी, पैथोलॉजी, माइक्रोबायोलॉजी, पीएसएम विषयों के चिकित्सक शिक्षकों को कार्यालय से अतिरिक्त समय में निजी प्रेक्टिस करने की अनुमति दी है। ये चिकित्सक कार्य स्थल से अधिकतम 25 किलोमीटर से दूर नहीं जाएंगे, प्रत्येक वित्तीय वर्ष शुरू होने से पहले निजी प्रेक्टिस करने के लिए विकल्प पत्र प्रस्तुत करेंगे, ऐसे चिकित्सकों को नियमानुसार एनपीए और एनसीए देय नहीं होगा, इस प्रेक्टिस के बदले में उन्हें राजकीय कार्य बाधित करने की अनुमति नहीं होगी, ऐसा होने पर राजकार्य में उल्लंघन माना जाएगा।