जयपुर। घटिया और नकली दवा बेचना दवा विक्रेताओं के लिए तो जैसी आम बात है लेकिन मरीजों की जान के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। बेचारे मरीज इस बात से बिल्कुल अनजान है कि वो जो दवा गटक रहें है वो घटिया दवा है। बता दें कि कैंसर जैसी घातक बीमारी के इलाज में प्रयोग होने वाली दवा भी अमानक होने के बावजूद भी खा पाई जा रही है। अब इस मामले में प्रदेश का चिकित्सा महकमा करीब 400 करोड़ की घटिया दवाओं को मरीजों के बीच खपाने के खेल में साझीदार बन गया है। कैंसर से लेकर जुकाम तक की दवाइयां ले रहे राज्य भर के मरीजों का एक बड़ा हिस्सा ऐसा है, जिसे पता ही नहीं है कि वह जो दवा ले रहे हैं, वह शुदृध है या नहीं। मामला जुड़ा है औषधि नियंत्रण संगठन की कारगुजारी से। जहां पता होने के बावजूद भी दवा के घटिया होने की जानकारी विक्रेताओं तक नहीं पहुंचाई जा रही है, इसका सीधा नुकसान मरीजों को हो रहा है। जो अनजाने में ही ऐसा दवाओं को गटक रहे हैं। प्रदेश में यह भी सामने आ चुका है कि कई नकली दवा निर्माता बाजार में आसानी से उपलब्ध कच्चा माल खरीदकर असली दवाओं जैसा ही हुब हू कंटेंट इस्तेमाल कर रहे हैं।
पूर्व में इस तरह के मामले सामने भी आ चुके हैं। इसके बाद संगठन को कंपनियों से इन दवाओं की पहचान की मदद तक लेनी पड़ी है। इससे यह भी सामने आया कि नकली व घटिया दवा निर्माता भले ही शातिर होते जा रहे हैं, लेकिन जिम्मेदार तब भी अनजान बने हुए हैं। दवा विक्रेताओं से घटिया दवाओं की जानकारी मिलने के बारे में पूछा गया तो जवाब मिला कि संगठन के अधिकारी सैंपल उठाने और लगातार निरीक्षण में तो रुचि दिखाते हैं, लेकिन जब सैंपल फेल होता है तो उसकी तत्काल जानकारी उनके पास नहीं आती। संगठन के हाईटेक कार्यालय में मौजूद राज्य के औषधि नियंत्रक राजाराम शर्मा से पूरे प्रदेश के घटिया दवाओं की जानकारी गुरुवार को मांगी गई तो जवाब मिला कि यह तो जिलों से मंगवानी होगी।
24 घंटे का समय उन्होंने मांगा, लेकिन तब भी उपलब्ध नहीं करवाई जा सकी। प्रदेश में संगठन के मुख्यालय को हाल ही हाईटेक कर दिया गया है। जहां तकनीक का पूरा इस्तेमाल किया गया है। लेकिन पांच साल में भी उस गुजरात मॉडल को नहीं अपनाया गया है, जिसमें घटिया दवा की रिपोर्ट मिलते ही एक क्लिक पर सभी दवा विक्रेताओं तक उसकी जानकारी पहुंचा दी जाती है, जिससे उनकी बिक्री तत्काल रुक जाए। करीब पांच साल पहले संगठन ने गुजरात मॉडल अपनाकर घटिया दवाओं के संबंधित बैच की जानकारी रिपोर्ट मिलते ही तत्काल सभी दवा विक्रेताओं तक पहुंचाने का तंत्र विकसित करने पर काम शुरू कर दिया था। उस समय दवा विक्रेताओं की जानकारी आनलाइन करने पर भी काम किया गया।
सिर्फ एक छोटी सी तकनीक की अनदेखी के चलते लाखों मरीजों के साथ यह खेल हो रहा है। जबकि तकनीकी पर खर्च को देखें तो खुद के कार्यालय को चमकाने पर ही करोड़ों रुपए खर्च कर दिए गए हैं। प्रदेश में इस समय सालाना निजी दवा बाजार करीब 20 हजार करोड़ का है। जिसमें से करीब 2 प्रतिशत यानि 400 करोड़ का अनुमानित घटिया, नकली और अमानक दवा कारोबार माना जाता है। 600 करोड़ का निशुल्क दवा बाजार अलग है।लापरवाही की स्थिति यह है कि प्रदेश में जोधपुर, उदयपुर और बीकानेर की तीन नई जांच प्रयोगशालाएं बनकर तैयार हैं, लेकिन इन्हें क्रियाशील ही नहीं किया जा सका है। कारणों की पड़ताल में सामने आया कि इसके लिए ये दक्ष स्टाफ ही ये अब तक भर्ती नहीं कर पाए हैं।