WHO report on Antibiotics: अक्सर ऐसा होता है जब हमें सर्दी-जुकाम या फिर बुखार होता है तो हम तुरंत ठीक होने के लिए कोई भी एंटीबॉयोटिक दवा खा लेते हैं। हम एंटीबॉयोटिक दवा ये सोचकर खाते हैं कि जल्दी ठीक हो जायेंगे लेकिन हम इन दवाओं को खाकर अपनी मौत को दावत दे रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization) चौंकाने वाला खुलासा कर डाला है। WHO ने ऐसी दवाईयों के नाम बताए हैं जो जो बैक्टीरियल इंफेक्शन पर अपना असर खो रही हैं और खून में जानलेवा इंफेक्शन बन जाता है।

बैक्टीरियल इन्फेक्शन के लक्षण बहुत सामान्य होते हैं। यदि आपको निमोनिया, यूरीनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन, टीबी जैसी बीमारियों हुई है तो खांसी-जुकाम, तेज बुखार, सिरदर्द, उल्टी, कमजोरी, सांस लेने में तकलीफ जैसे लक्षण दिख सकते हैं। बैक्टीरियल इन्फेक्शन को ठीक करने के लिए डॉक्टर अक्सर एंटीबायोटिक्स दवाएं खाने की सलाह देते हैं।

ग्लोबल एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस एंड यूज सर्विलांस सिस्टम (GLASS) ने 6 सालों में पहली बार 127 देशों के प्रतिभागियों का अध्ययन किया। इस रिपोर्ट को वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन के द्वारा प्रकाशित किया गया जिसमें खून में इन्फेक्शन पैदा करने वाले बैक्टीरिया के करीब 50 प्रतिशत मामलों में एंटीबायोटिक्स दवाओं का असर कम पाया गया। बैक्टीरियल इन्फेक्शन पर एंटीबायोटिक दवाओं का असर खत्म होने को एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस (AMR) कहा जाता है।

बेहद असरदार एंटीबॉयोटिक दवाई का प्रभाव हुआ कम

र्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन की रिपोर्ट में ये भी जानकारी दी गई कि के. निमोनिया और एसिनेटोबेक्टर एसपीपी. जैसे बैक्टीरिया ठीक ना होने पर खून में जानलेवा इन्फेक्शन पैदा कर सकते हैं। इनका इलाज करने में लेटेस्ट कार्बापेनेम्स (Carbapenems) ड्रग्स को असरदार पाया गया था। के.निमोनिया की 8 प्रतिशत दवाएं बेअसर होती जा रही है। इनमें इमिपेनेम, पानीपेनेम, डोरिपेनेम, मेरोपेनेम, बायपेनेम, एर्टापेनेम जैसी दवाएं आती हैं।

ई. कोलाई बैक्टीरिया के कारण यूरीनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन होना सामान्य बात है। इस बीमारी में  एम्पीसिलीन और को-ट्राइमोक्साजोल (ampicillin and co-trimoxazole) और सेकेंड लाइन ट्रीटमेंट के रूप में फ्लोर क्विनोलोन्स (fluoroquinolones) दी जाती है।  लेकिन इनमें 20 प्रतिशत दवाएं अपना असर नहीं दिखा रही है।

इतना क्यों हो रहा है एंटीबायोटिक दवाओं का इस्तेमाल 
डॉक्टरों द्वारा अनुचित, एंटीबायोटिक दवाओं की बिक्री, इसके अलावा घटिया एंटीबायोटिक दवाइयां बेची जा रही हैं, बीमारी को रोकने के लिए कम टीकाकरण स्तर, अस्पतालों में खराब संक्रमण नियंत्रण, स्वच्छ पानी की कमी और नियंत्रित सीवर, एंटीबायोटिक निर्माण के लिए पर्यावरण नियंत्रण की कमी। अनुचित एंटीबायोटिक खपत अक्सर बिना परामर्श के, एक बड़ी समस्या है। यहां तक कि जब कोई डॉक्टर भी शामिल होता है, तो एंटीबायोटिक दवाएं कभी-कभी दस्त, खांसी, सर्दी और फ्लू के लिए निर्धारित होती हैं, जो मुख्य रूप से वायरस के कारण होती हैं जो एंटीबायोटिक दवाओं का जवाब नहीं देते हैं।