DCGI: भारतीय दवा महानियंत्रक (DCGI) ने एक ओर भारतीय फार्मास्युटिकल उद्योग के शानदार प्रदर्शन की सराहना की। लेकिन दूसरी ओर कुछ महीने पहले भारत में निर्मित कफ सिरप और आंखों के मलहम पर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओं) के  द्वारा जारी गुणवत्ता अलर्ट के मद्देनजर गुणवत्ता संबंधी चिंताएं जताईं। डीसीजीआई चाहती है कि दक्षिण भारत के दवा निर्माता दवा उत्पादन के मुख्य क्षेत्र के रूप में गुणवत्ता पहलू पर अपना ध्यान केंद्रित करें।

गुणवत्ता नियंत्रण तंत्र में किसी भी चूक को गंभीरता से लिया जाएगा : DCGI

डीसीजीआई ने सभी निर्माताओं को चेतावनी दी है कि गुणवत्ता नियंत्रण तंत्र में किसी भी चूक को गंभीरता से लिया जाएगा और गलती करने वाली कंपनियों के खिलाफ सख्त नियामक कार्रवाई शुरू की जायेगी।

चेन्नई में फार्माक साउथ एक्सपो के हिस्से के रूप में आयोजित एक सेमिनार में राष्ट्रीय दवा नियामक, डॉ. राजीव सिंह रघुवंशी ने कहा कि, “फार्मास्युटिकल गुणवत्ता – हम क्या खो रहे हैं?” विषय पर एक व्याख्यान देते हुए हुए डीसीजीआई ने कहा कि दवाओं की खराब गुणवत्ता भारत से विदेशों में निर्यात होने वाले उत्पादों ने अंतरराष्ट्रीय बाजार में देश की छवि खराब की है। उन्होंने कहा कि फार्मास्युटिकल गुणवत्ता वैश्विक मंच पर चर्चा का विषय बन गई है और अंतरराष्ट्रीय समुदाय को संदेह होने लगा है कि क्या भारत वैश्विक आबादी के लिए गुणवत्तापूर्ण फार्मास्यूटिकल्स बनाने में सक्षम है।

डॉ राजीव सिंह रघुवंशी ने कहा कि घरेलू और वैश्विक बाजारों के लिए खराब गुणवत्ता वाली दवाएं बनाने वाली कंपनियों को राष्ट्रीय दवा नियामक कार्यालय से कड़ी कार्रवाई का सामना करना पड़ेगा और उनकी ओर से कोई समझौता नहीं किया जाएगा। उन्होंने निर्माताओं को याद दिलाया कि केंद्रीय एजेंसी के पास राज्य नियामकों के समान विनिर्माण संयंत्रों का ऑडिट करने का समान अधिकार है। उनके अनुसार, निर्माता दो श्रेणियों की दवाओं का उत्पादन करते हैं, एक श्रेणी निर्यात के लिए और दूसरी घरेलू उद्देश्यों के लिए।

उत्पादन प्रक्रिया में गुणवत्ता तंत्र के शत-प्रतिशत अनुपालन के लिए एक व्यवस्थित परिवर्तन की आवश्यकता

डॉ राजीव सिंह रघुवंशी बोले कि एनएसक्यू या घटिया या नकली या जो कुछ भी हो, उसका मुद्दा किसी एक उत्पाद या एक कंपनी के कारण नहीं है, यह कंपनियों द्वारा अपनाई जाने वाली प्रणाली के कारण है। अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का विश्वास बहाल करने के लिए सभी निर्माताओं द्वारा उत्पादन प्रक्रिया में गुणवत्ता तंत्र के शत-प्रतिशत अनुपालन के लिए एक व्यवस्थित परिवर्तन की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि केंद्रीय नियामक कार्रवाई शुरू करने के लिए खराब गुणवत्ता वाली दवाओं के कारण होने वाली मौतों का इंतजार नहीं करेंगे, हाल ही में एक अभियान के रूप में शुरू किया गया संयुक्त निरीक्षण लंबे समय तक जारी रहेगा।

हम अपने देश को दुनिया की फार्मेसी के रूप में दावा करते हैं, लेकिन ऐसा लगता है कि लंबे समय तक शीर्ष स्थान बनाए रखना बहुत मुश्किल है। यदि पद खो गया, तो अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का विश्वास बहाल करना दर्दनाक और कठिन होगा। इसके अलावा, हम विश्व की संपूर्ण मानवता की सेवा करने का अवसर खो देंगे। नुकसान की ज़िम्मेदारी न केवल निर्माताओं पर, बल्कि सभी हितधारकों पर समान रूप से आएगी।

पूरे भारत में 10,500 एमएसएमई इकाइयां दवाओं के उत्पादन में लगी हुई

कफ सिरप संदूषण और अंतरराष्ट्रीय स्वास्थ्य संगठन के गुणवत्ता अलर्ट की ओर इशारा करते हुए, डॉ. रघुवंशी ने कहा कि केंद्रीय औषधि नियंत्रण प्रशासन ने राज्य नियामक विभागों के साथ एक संयुक्त अभियान, एक जोखिम-आधारित निरीक्षण शुरू किया है, लेकिन इसका निराशाजनक परिणाम सामने आया, जिससे एमएसएमई को पता चला। उनके मुताबिक सौ प्रतिशत गुणवत्ता के मुद्दे एमएसएमई सेक्टर से सामने आए हैं। उन्होंने कहा कि पूरे भारत में 10,500 एमएसएमई इकाइयां दवाओं के उत्पादन में लगी हुई हैं, लेकिन उनमें से कई में कौशल की कमी है।

ये भी पढ़ें- 2022-23 में चिकित्सा उपकरणों का निर्यात 16 प्रतिशत बढ़ा

जोखिम-आधारित निरीक्षणों के संबंध में, उन्होंने कहा कि सीडीएससीओ ने निरीक्षणों के लिए एक रूपरेखा तैयार की है जो केंद्रीय और राज्य नियामकों द्वारा तैयार किए गए एनएसक्यू के ऐतिहासिक डेटा पर आधारित है। एमएसएमई पर किए गए एक राष्ट्रीय सर्वेक्षण में यह पाया गया कि 209 कंपनियों के पास 10 से अधिक एनएसक्यू थे। कुछ सालों की अवधि के भीतर 70 से अधिक एनएसक्यू वाली कंपनियों में पाया गया कि उनकी उत्पादन प्रक्रियायें बदत्तर थीं।