चंडीगढ़
महंगे इलाज का आख्रिर क्या इलाज है ? हेल्थ एकोनामिक्स से जुड़े एक्सपर्ट इसके दो विकल्प सुझाते हैं। यदि उन दो विकल्पों पर काम कर लिया जाए तो देश के हर नागरिक को सस्ता इलाज मिल सकता है। इसके लिए सरकार को सिर्फ पूरी इच्छा शक्ति के साथ कदम उठाने होंगे। सारी समस्या का हल निकल आएगा।

चंडीगढ़ प्रशासन इस दिशा में कुछ हद तक काम करता दिखाई दे रहा है, लेकिन जब तक इस पर 100 प्रतिशत तक परिणाम नहीं आता, तब तक सभी प्रयास जीरो नजर आएंगे। एक नजर डालते हैं महंगे इलाज के विकल्पों पर।

मजबूत होना चाहिए प्राइमरी हेल्थ केयर सेंटर एक्सपर्ट बताते हैं कि बड़े अस्पतालों से भीड़ कम करने और मरीजों को महंगे इलाज से बचाने के लिए सरकार और
प्रशासन को प्राइमरी हेल्थ केयर सेंटर को मजबूत करना होगा। बीमारी के 85 प्रतिशत मामलों में बड़े हास्पिटल्स की जरूरत नहीं पड़ती। इसे एक उदाहरण से समझें। कैंसर की शुरुआत गांठ से शुरू होती है। यदि गांठ की पहचान प्राइमरी हेल्थ केयर सेंटर पर हो जाए तो पीजीआई या जीएमसीएच 32 जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। इसी तरह से सभी ब्लड टेस्ट डिस्पेंसरी स्तर पर हो जाएं तो उन्हें जीएमएसएच 16 या पीजीआई जाने की जरूरत क्यों पड़ेगी। इसके लिए प्रशासन और सरकार को चाहिए वे अपने हेल्थ केयर सेंटर को मजबूत करें।

उनमें डाक्टरों की संख्या, लैब और जांच की सभी सुविधाएं मुहैया करानी होंगी। इसके अलावा डाक्टरों को भी समय-समय पर ट्रेंड और अपडेट करना चाहिए ताकि वे डिस्पेंसरी स्तर पर ही अपना इलाज करा पाएं। कुछ विशेषज्ञ यह भी कहते हैं कि सरकार को अपना 50 फीसदी बजट प्राइमरी हेल्थ केयर सेंटर पर खर्च करना चाहिए।

सरकारी अस्पतालों में मिलें सभी दवाइयां
स्टडीज बताती हैं कि किसी भी मरीज का सबसे ज्यादा खर्च दवाइयों पर होता है। करीब 70 प्रतिशत राशि दवाइयों पर फुंक जाती है। अस्पताल में रेगुलर दवाइयां नहीं मिलतीं। सरकारी डाक्टर जो भी दवा लिखता वह तो कभी संस्थानों में मिलती नहीं। यही हाल टेस्ट का भी होता है। कभी किट खत्म हो जाती है तो कभी किट की सप्लाई रोक दी जाती है। यदि सरकारी अस्पताल में ही सभी दवाइयां मिल जाएं तो व्यक्ति बाहर क्यों दवाइयां लेने जाएगा।

एक्सपर्ट कहते हैं कि यदि सरकार एक साथ पूरे देश भर के लिए दवाइयां खरीदती है तो कुल मूल्य का सिर्फ चौथाई हिस्सा खर्च में आता है, लेकिन सरकार की ओर से रेगुलर दवाइयों की सप्लाई नहीं हो पाती। कैंसर और हार्ट से संबंधित दवाएं अस्पताल में मिलने लगें तो इनका इलाज मात्र 10-15 हजार में हो जाए। यह सब करना बहुत आसान है। सिर्फ सरकार की इच्छा शक्ति की जरूरत है।
अभी ये हो रहा – मौजूदा समय में राज्य सरकारें अपने हेल्थ बजट का 80-90 प्रतिशत राशि स्वास्थ्य विभाग से जुड़े वर्करों पर खर्च कर रही हैं। बाकी राशि मेडिकल एंड सर्जिकल सप्लाई पर खर्च होती है। बचती है मात्र 10-15 प्रतिशत राशि।

इतनी राशि में क्या नई सुविधाएं आएंगी, आप अच्छी तरह से समझ सकते हैं। सरकारों को चाहिए कि हेल्थ के इंफ्रास्ट्रक्चर पर ज्यादा बजट खर्च करें। सीधा सा मतलब यह है कि हेल्थ पर बजट बढ़ाना होगा।

हेल्थ एकोनामिक्स पीजीआई के  एसोसिएट प्रोफेसर का कहना है कि यदि सरकारे 50 प्रतिशत बजट प्राइमरी हेल्थ सेक्टर पर खर्च करे तो काफी सुधार आ सकता है। महंगे इलाज से बचा जा सकता है।

महंगा इलाज का विकल्प बहुत आसान है। यदि सरकार सुनिश्चित कर ले कि प्राइमरी हेल्थ केयरसेंटर पर सभी दवाएं उपलब्ध होंगी। सभी लैब टेस्ट होंगे। सभी जांचें होंगी तो इलाज आटोमैटिक? सस्ता हो जाएगा। यही नहीं प्राइवेट हास्पिटल्स भी अपना इलाज का खर्च घटा देंगे।