नई दिल्ली। केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) चिकित्सक की पर्ची के बगैर बिकने वाली दवा या ओवर द काउंटर (ओटीसी) दवाओं के लिए नियम बनाएगा। योजना के तहत डॉक्टर की पर्ची के बिना बेची जा सकने वाली दवा के बारे में स्पष्टï नियम तय किए जाएंगे। भारत के औषधि महानियंत्रक जीएन सिंह ने बताया कि कोई अलग नियमन नहीं होने से ज्यादा जोखिम वाली दवाओं के दुरुपयोग की आशंका रहती है। यहां उन दवाओं के नाम नहीं हैं, जिन्हें ओटीसी के तौर पर नहीं बेचा जा सकता।
वर्तमान में दवाओं को अनुसूची एक्स, एच, एच1, जी तथा के में वर्गीकृत किया गया है, जिसकी बिक्री चिकित्सकों की पर्ची के बिना नहीं हो सकती। सरकार कैमिस्टों को चिकित्सकों की पर्ची पर मुहर लगाने को कहने की भी योजना बना रही है ताकि उस पर्ची का दोबारा इस्तेमाल न हो सके। इन दवाओं के अत्यधिक सेवन के चलते एंटी-माइक्रोबियल प्रतिरोधक कम न हो, उससे बचाने के लिए ओटीसी दवाओं के लिए नए दिशा-निर्देश लाए जा रहे हैं।औषधि नियंत्रक इन्हें अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुकूल बनाने का भी प्रयास कर रहा है, क्योंकि विकसित देशों में ओटीसी उत्पादों के लिए अलग से नियम हैं। सरकार इसके लिए दवा एवं कॉस्मैटिक्स नियमों में बदलाव करेगी। दवा परामर्श समिति वर्तमान में अनुसूची एक्स, एच, एच1, जी और के श्रेणी की दवाओं पर विचार करेगी।
इस श्रेणी की दवाओं को उच्च जोखिम वाला माना गया है और ये कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी के उपचार में काम आती हैं। ऑल इंडिया कैमिस्ट एंड ड्रगिस्ट्स फेडरेशन की राय है कि सरकार को ओटीसी दवाओं का मार्जिन तय करना चाहिए और ऐसे उत्पादों पर काफी कम मार्जिन रखना चाहिए। घरेलू दवा कंपनियां बिक्री बढ़ाने के लिए ओटीसी खंड पर ध्यान दे रही हैं। वे बिक्री में नरमी दूर करने के लिए इस क्षेत्र में चिकित्सकों के पर्ची वाले पुराने ब्रांडों को नए सिरे से बाजार में ला रही हैं या ऐसे ब्रांडों का अधिग्रहण कर रही हैं। उद्योग की घरेलू बिक्री वृद्धि 2017 में घटकर 5.5 फीसदी रह गई, जो आठ साल में सबसे कम है। पुरानी दवाओं को नए सिरे से ओटीसी श्रेणी में उतारने पर कंपनियों को बिक्री बढ़ाने में मदद मिल रही है। निकोलस हॉल की एक रिपोर्ट के अनुसार 2016 में भारत में ओटीसी का बाजार 18860 करोड़ रुपये था। इसके सालाना 9 फीसदी चक्रवृद्धि दर से बढक़र 2026 तक 44110 करोड़ रुपये तक पहुंचने का अनुमान है।