रोहतक: फतेहाबाद में एक गैर सरकारी संगठन की शिकायत पर परिवेदना समिति की बैठक में स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज द्वारा फूड सेफ्टी अधिकारी श्यामलाल को सस्पेंड करने का मामला तर्क संगत नहीं लग रहा। जानकारी के अनुसार, दूध के सैंपल फेल होने के बावजूद कार्रवाई न करने के जिस आरोप के तहत एफएसओ श्यामलाल को निलंबित किया है, वह सैंपल डिप्टी सिविल सर्जन डॉ. गिरिश ने नवंबर, 2015 में लिया था। उसी महीने सैंपल फेल की रिपोर्ट आ गई थी। नियमों के तहत संबंधित व्यक्ति को कोई शंका हो तो एक माह के भीतर वह पुन: सैंपल जांच या अन्य किसी भी वजह के लिए सिविल सर्जन को अर्जी दे सकता है।
दूसरी ओर, एफएसओ श्यामलाल ने फतेहाबाद का अतिरिक्त कार्यभार फरवरी 2016 में संभाला। जिले में खाद्य पदार्थों में मिलावट, रोग फैलने और निवारण की वजहों में एक्शन लेने का पूरा अधिकार सिविल सर्जन के पास होता है।
सवाल उठता है कि जब डिप्टी सिविल सर्जन ने सैंपल लिया, सैंपल फेल हो गया तो उसके तीन माह बाद भी उचित कार्रवाई क्यों नहीं अमल में लाई गई। क्या इसके लिए स्वास्थ्य मंत्री को सिविल सर्जन या डिप्टी सिविल सर्जन का खोट नजर नहीं आया।
बातचीत में एफएसओ श्यामलाल ने तो यहां तक कहा कि उन्हें यही नहीं पता था कि किस डेयरी से सैंपल लिया। वह परिवेदना समिति की बैठक में उपस्थित भी नहीं थे, सिविल सर्जन और उनके सहयोगी अधिकारियों ने ही मामला स्पष्ट किया। चर्चा है कि आम जनता के बीच फैसलों को लेकर चर्चा में रहने के लिए स्वास्थ्य मंत्री ने बिना पक्ष जाने एफएसओ को निलंबित कर दिया। हालांकि वह राज्य के जिम्मेदारी मंत्री हैं, उन्हें सारे अधिकार हैं फैसले लेने के, लेकिन क्या किसी को सजा देने से पहले उसका पक्ष जानना न्याय संगत नहीं है। नियमों के मुताबिक, एफएसओ सिविल सर्जन के निर्देशों का पालन करने को बाध्य है, यदि इस बीच एफएसओ श्यामलाल ने कार्रवाई नहीं की तो, सिविल सर्जन उनसे जवाब मांग सकते थे, कार्रवाई में तेजी के लिए आदेश दे सकते थे, लेकिन जून-2016 तक ऐसा कुछ भी नहीं हुआ।
बेशक सिविल सर्जन डॉ. अशोक चौधरी ने मेडीकेयर से बातचीत में एफएसओ श्यामलाल को मामले में जिम्मेदार बताया लेकिन स्वास्थ्य मंत्री, जानकारों की राय लेकर फैसला करते तो श्यामलाल अकेले इतने दोषी नहीं पाए जाते, जितना उन्हें ठहराते हुए तत्काल निलंबित कर दिया गया।
यह दूसरा मामला है जब स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज के फैसले से फूड सेफ्टी अधिकारी आहत हैं, क्यों कि पिछले दिनों चंडीगढ़ से जारी सरकारी विज्ञप्ति में स्वास्थ्य मंत्री ने एफएसओ ओम कुमार को नकारा घोषित कर दिया था। विज्ञप्ति में स्वास्थ्य मंत्री ने कहा था कि एफएसओ ओमकुमार ने महीने में रोहतक जिले से एक सैंपल ही लिया है। जबकि नियम कहते हैं कि 30 सैंपल एक जिले से लिए जाने चाहिए। जब इस बाबत ओम कुमार से मेडीकेयर ने बात की तो उन्होंने 8 सैंपल लिए जाने का पूरा विवरण उपलब्ध करवाया। जिसकी खबर मेडीकेयर ने प्रकाशित भी की।
खैर, करे कोई भुगते कोई।
फतेहाबाद का मामला कुछ ऐसा ही प्रतीत होता है। वहीं, जनता और अधिकारियों को स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज के कई फैसले हजम नहीं हो रहे। खास बात: एफएसओ श्यामलाल और सिविल सर्जन डॉ. अशोक चौधरी ने शुरुआती दौर में तो मेडीकेयर से फोन पर वार्ता की, लेकिन बीच बातचीत पुन: फोन करने की बात कहकर काट दिया, लेकिन जब पुन: फोन किया तो दोनों ही अधिकारियों ने फोन उठाने की जहमत नहीं उठाई। खैर, अधिकारी जब तक सेवा में होते हैं, कई तरह के ‘धर्मसंकट’ होते हैं।