नई दिल्ली। डिप्रेशन की दवा से कार्डियक अरेस्ट का खतरा होने की बात सामने आई है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक, पूरी दुनिया में लगभग 3.1 फीसदी यानि 25 करोड़ लोग एंटी-डिप्रेसेंट दवाएं खा रहे हैं। नए शोध में बताया गया है कि ‘सडेन कार्डियक अरेस्ट’ से हो रही मौतों से एंटी-डिप्रेसेंट गोलियों का सीधा कनेक्शन है।

नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन में पब्लिश एक स्टडी के मुताबिक, जिन लोगों को कोई कार्डियोवस्कुलर डिजीज है, उन्हें डिप्रेशन का जोखिम ज्यादा होता है। वहीं जिन लोगों को डिप्रेशन है, उन्हें अचानक कार्डियक अरेस्ट का जोखिम ज्यादा होता है। अगर कोई एंटी-डिप्रेसेंट दवाएं भी खा रहा है तो अचानक कार्डियक अरेस्ट का जोखिम बहुत ज्यादा बढ़ जाता है।
फार्मा रैक के मुताबिक, भारत में मूड में सुधार के लिए और डिप्रेशन में खाई जाने वाली दवाओं की बिक्री में बीते कुछ सालों में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई है।

आजकल लोगों के बीच मूड बूस्टर और सेरोटॉनिन रिलीज करने वाली दवाएं बहुत तेजी से पॉपुलर हो रही हैं। लोग इन्हें तनाव, बेचैनी और उदासी से राहत पाने का आसान तरीका मानने लगे हैं।

एंटी-डिप्रेसेंट दवाएं कई बार मेंटल हेल्थ के लिए बहुत जरूरी हो सकती हैं। खासकर तब, जब कोई गंभीर डिप्रेशन से जूझ रहा हो, लेकिन इनका असर सिर्फ दिमाग पर नहीं, पूरे शरीर पर पड़ता है। इसका सबसे ज्यादा असर हमारे नर्वस सिस्टम, हॉर्मोन बैलेंस और दिल की इलेक्ट्रिकल एक्टिविटी पर होता है। ये दवाएं ब्रेन में सेरोटॉनिन, डोपामिन, नॉरएड्रेनालिन जैसे न्यूरोट्रांसमीटर का लेवल बढ़ाती हैं।

इनसे मूड सुधरता है। कोई भी दवा कितनी भी फायदेमंद क्यों न हो, उसके साइड इफेक्ट्स भी होते हैं। अगर लंबे समय तक कोई भी दवा बिना कंसल्टेंशन के ली जाए तो साइड इफेक्ट और बढ़ जाते हैं। एंटी डिप्रेसेंट के साइड इफेक्ट दूसरी दवाओं से ज्यादा हैं।