फार्मा पार्क में अंग्रेजी ही नहीं आयुर्वेदिक दवाओं का कच्चा माल पूरे देश के लिए होगा तैयार

झांसी। ऋषि च्यवन की कर्मस्थली ललितपुर में बनने वाले फार्मा पार्क में अंग्रेजी ही नहीं आयुर्वेदिक दवाओं का कच्चा माल तैयार किया जाएगा। 15 कंपनियां दवा बनाने के लिए आगे आ सकती हैं। इसके लिए सरकार की तरफ से उन्हें सब्सिडी भी दी जाएगी। 2068 एकड़ में यह पार्क बनना है। इसके लिए मड़ावरा के पास जमीन का चयन भी किया जा रहा है। पार्क शुरू होने के बाद ललितपुर से देश भर को दवाओं के रॉ मैटेरियल की सप्लाई शुरू हो जाएगी।

बता दें कि बल्क ड्रग पार्क में सिर्फ एलोपैथिक नहीं, बल्कि आयुर्वेद अर्क तैयार करने पर भी काम किया जाएगा। यहां सफेद मूसली के अलावा बेल गूदा, अश्वगंधा, ब्राह्मी, शंकपुष्पी, आंवला, खैर के बीज, गोंद, कसीटा, धावड़ा, मेंथा, पिपली, कालमेघ, कुटकी, मुलैठी, श्तावरी, मकोय आदि जड़ी-बूटियां यहां पर्याप्त मात्रा में होती हैं। माना जा रहा है कि इसीलिए ललितपुर का चयन बल्क ड्रग पार्क के लिए हुआ है। सहायक आयुक्त औषधि अतुल उपाध्याय ने बताया कि ड्रग पार्क बनने के बाद इन जड़ी-बूटियों का अर्क तैयार कर देश भर को सप्लाई किया जाएगा।

दरअसल बल्क ड्रग पार्क सभी आधुनिक सुविधाओं से लैस एक ऐसा इंडस्ट्रियल क्षेत्र होता है, जिसमें थोक औषधि निर्माण की सभी सुविधाएं कच्चा माल तैयार करने से लेकर विकसित लैब टेस्टिंग की सुविधा तक एक ही स्थान पर उपलब्ध होती है। ड्रग पार्क शुरू होने के बाद रोजगार के नए मौके मिलेंगे, साथ ही देश की आर्थिक स्थिति मजबूत होगी। कच्चे माल पर निर्भरता होने से कई बार समय अनुसार इनकी आपूर्ति भी नहीं हो पाती है, जिससे दवाओं के उत्पादन में भी देरी हो जाती है और बाजारों में भी दवाइयों की कमी हो जाती है।

निर्भरता दूर होने से दवाओं की निरंतर आपूर्ति बनी रहेगी। वर्तमान में फार्मा सेक्टर 6500 करोड़ डालर का है, जिसे 2024 तक आत्मनिर्भर भारत के अंतर्गत सरकार का लक्ष्य इसको 12000 अरब डालर यानी करीब नौ लाख करोड़ तक पहुंचाना है। बता दें कि ललितपुर जिला प्राचीन काल से ही जड़ी- बूटियों से समृद्ध रहा है। तहसील पाली के ग्राम बंट में च्यवन ऋषि का बहुत समय बीता है। ग्राम बंट के घने जंगल में तमाम जड़ी- बूटियां पाई जाती हैं। जिले भर में फैले घने जंगल में मिलने वाली जड़ी- बूटियां जंगल के आसपास रहने वाले सहरिया जनजाति के लोगों के लिए आय का साधन हैं।

यहां की सहरिया जनजाति के लोग सफेद मूसली को बेचते हैं। च्यवन ऋषि ने यहीं पर रहकर च्यवनप्राश का निर्माण किया था, जो आयुर्वेद की महत्वपूर्ण खोज माना जाता है। ग्राम बंट का जंगल इतना घना और दुर्गम है कि आसानी से वहां नहीं पहुंच सकते हैं। भारतीय दवा उद्योग का विश्व में तीसरा स्थान है, मगर कच्चे माल के लिए हमें चीन जैसे देशों पर निर्भर रहना पड़ता है। इसी निर्भरता को खत्म करने के लिए आत्मनिर्भर भारत के अंतर्गत देश में ही दवा निर्माण के लिए कच्चा माल तैयार करना है, जिससे दवा उत्पादन की लागत में भी कमी आएगी और आयात के स्थान पर दवा निर्माण में उपयोग होने वाले के कच्चे माल का निर्यात भी किया जा सकता है।

इसी क्रम में सरकार ने प्रदेश के ललितपुर जिले में बल्क ड्रग पार्क और ग्रेटर नोएडा में मेडिकल डिवाइस पार्क की मंजूरी दी है। ललितपुर में 2068 एकड़ में बनने वाले इस पार्क में दवा उत्पादन इकाइयों के लिए एक हजार एकड़ क्षेत्र होगा, जिसमें फार्मास्युटिकल इंग्रेडियंट्स इकाइयां बनाई जाएंगी। इसके अलावा अन्य स्थान पर शोध, परीक्षण केंद्र, सड़क, परिवहन आदि सुविधाएं होंगी। औषधि निरीक्षक उमेश भारती ने बताया कि एक कंपनी 30 से 50 एकड़ में आराम से अपनी इकाई स्थापित कर लेती है, ऐसे में बल्क ड्रग पार्क में 15 कंपनियां तक आ सकती हैं। इससे फार्मा क्षेत्र को नई दिशा मिलेगी।

 

 

Advertisement