नई दिल्ली। आयुर्वेद दवाओं के विज्ञापन पर लगी रोक को SC ने हटा लिया है। औषधि नियम 170 मंजूरी के बिना आयुर्वेदिक, सिद्ध या यूनानी दवाओं के विज्ञापनों पर प्रतिबंध लगाता है। खंडपीठ ने इंडियन मेडिकल एसोसिएशन द्वारा विज्ञापनों के संबंध में दायर याचिका का निपटारा कर दिया।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि याचिका पर आगे विचार करने में कोई उद्देश्य पूरा नहीं होगा। इसलिए रिट याचिका का निपटारा किया जाता है। नतीजतन, 27 अगस्त 2024 का अंतरिम आदेश निरस्त हो गया है। न्यायालय ने सभी पक्षों को राहत पाने की स्वतंत्रता सुरक्षित रखी।

यदि उन्हें नियम 170 की चूक के संबंध में कोई शिकायत है तो उचित कार्यवाही को खुला रखा है। आयुष मंत्रालय ने 1 जुलाई, 2024 को नियम 170 हटाते हुए औषधि नियम जारी किए थे। 27 अगस्त, 2024 को सर्वोच्च न्यायालय ने अधिसूचना पर रोक लगा दी। कोर्ट के अनुसार यह उसके पहले 7 मई, 2024 के आदेश के विपरीत है। इसमें नियम 170 के पालन का निर्देश दिया था।

न्यायालय ने कहा कि रिट याचिका को बंद किया जा सकता है। याचिका में मूल शिकायत को पिछले कई आदेशों द्वारा संबोधित किया गया था। इसमें 26 मार्च, 2025 का एक आदेश भी शामिल था। इसके द्वारा न्यायालय ने आपत्तिजनक विज्ञापन अधिनियम, 1954 को लागू करने का निर्देश दिया था।

आज सुनवाई के दौरान औषधि नियम 170 को हटाने पर लगी रोक हटाने की मांग की गई। यह तर्क देते हुए कि नियमित दवाओं का परीक्षण और अनुमोदन होता है। आयुर्वेदिक दवाएं ऐसी प्रक्रियाओं के अधीन नहीं हैं। खंडपीठ ने कहा कि जो व्यक्ति नियम को छोडऩे वाली संबंधित अधिसूचना से पीडि़त हैं, वे उचित मंच के समक्ष उचित कार्यवाही शुरू कर सकते हैं। यह मामला आईएमए की याचिका से उत्पन्न हुआ। इसमें पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड द्वारा चिकित्सा विज्ञापनों के नियमन की मांग की गई थी। बाद में पतंजलि के प्रबंध निदेशक आचार्य बालकृष्ण तथा सह-संस्थापक बाबा रामदेव के खिलाफ अवमानना कार्यवाही को भी शामिल कर लिया गया।