न्यूयॉर्क। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने एस्ट्राजेनेका और ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के कोरोना टीके को आपातकालीन उपयोग की मंजूरी प्रदान की है। पुणे स्थित सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने इस टीके को कोविशील्ड के नाम से तैयार किया है। इस मंजूरी के बाद महामारी से निपटने के लिए संयुक्त राष्ट्र की सहायता से दुनियाभर के देशों में वैक्सीन की लाखों डोज पहुंच सकेंगी। गौरतलब है कि एस्ट्राजेनेका और ऑक्सफोर्ड की वैक्सीन को पहले से ही ब्रिटेन, भारत, अर्जेंटीना और मैक्सिको सहित 50 से अधिक देशों में आपात इस्तेमाल की मंजूरी मिल चुकी है।

यह टीका काफी सस्ता है और इसे रखना भी आसान है। डब्लूएचओ फाइजर-बायोएनटेक की वैक्सीन को पहले ही मंजूरी दे चुका है। स्टोरेज इस वैक्सीन की सबसे बड़ी दिक्कत है। इसे स्टोर करने के लिए बेहद ही कम तापमान में रखने की आवश्यकता होती है।गरीब और विकाशील देशों में ऐसे कोल्ड स्टोरेज की उपलब्धता नहीं है। दरअसल दुनियाभर में 10.9 करोड़ लोग अब तक कोरोना से संक्रमित हो गए हैं। वहीं 24 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हो गई है। इसके बाद भी दुनिया के कई देशों ने अभी तक टीकाकरण कार्यक्रम शुरू नहीं किया है और यहां तक कि समृद्ध देशों को भी टीके की खुराक की कमी का सामना करना पड़ रहा है।

वैक्सीन की मांग इतनी है कि निर्माता उत्पादन में तेजी लाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र की स्वास्थ्य एजेंसी ने सोमवार को एक बयान में कहा कि उसने सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया और दक्षिण कोरिया की एस्ट्राजेनेका-एसकेबायो द्वारा बनाए जा रहे एस्ट्रोजेनेका टीके को आपातकालीन मंजूरी प्रदान की है। डब्ल्यूएचओ द्वारा एस्ट्राजेनेका के कोरोना टीके को हरी झंडी मिलने के साथ ही गरीब देशों में भी इसकी खुराक पहुंचना सुनिश्चित हो पाएगा।

पिछले हफ्ते डब्ल्यूएचओ के विशेषज्ञ समूह ने 18 साल से अधिक उम्र के लोगों के लिए एस्ट्राजेनेका टीके के इस्तेमाल की सिफारिश की थी। हालांकि, डब्ल्यूएचओ वैक्सीन को अनुमोदित या विनियमित नहीं करता है, लेकिन जिन विकासशील देशों में दवा नियामक व्यवस्था मजबूत नहीं है, उनके लिए वह वैक्सीन की सुरक्षा और प्रभाव का आकलन करता है।