जेनेवा। कोविड-19 का असरदार इलाज ढूंढने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने एक क्लीनिकल ट्रायल शुरू किया है। यह ट्रायल मलेरिया, ल्यूकीमिया और ऑटोइम्यून डिजीज जैसे आर्थराइटिस की दवाओं पर किया जा रहा है। WHO का कहना है, एक्सपर्ट के एक पैनल ने इन तीनों दवाओं को इसलिए चुना है ताकि कोविड से होने वाली मौतों को रोका जा सके। इस ट्रायल का नाम ‘सॉलिडेरिटी प्लस’ रखा गया है। 52 देशों के 600 अस्पतालों में भर्ती मरीजों पर यह ट्रायल किया जाएगा। ट्रायल में यह भी देखा जाएगा कि अलग-अलग देशों में कोविड के मरीजों पर इन दवाओं का कितना असर हो रहा है। फिर इनकी तुलना की जाएगी कि कौन सी दवा कितनी ज्यादा असरदार है।
इम्यून सिस्टम के बेकाबू होने की वजह है शरीर में interleukin-6 (IL-6) प्रोटीन का मानक स्तर से अधिक बढ़ जाना। इस प्रोटीन की मात्रा अधिक बढ़ने पर मरीजों के अंगों में सूजन, इनका काम न करना और मौत का खतरा बढ़ता है। वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि कम से कम इन 3 दवाओं में से कोई एक दवा तो कारगर साबित होगी और interleukin-6 (IL-6) को कंट्रोल करने में सफल हो सकेगी।
ट्रायल में शामिल वैज्ञानिकों का मानना है, इन बीमारियों में इस्तेमाल होने वाली एंटी-इंफ्लेमेट्री दवाएं संक्रमण के बाद बेकाबू होने वाले इम्यून सिस्टम को कंट्रोल कर सकती हैं। इन दवाओं के जरिए कोविड का सस्ता और असरदार इलाज ढूंढने की कोशिश जारी है।
सबसे पहले जानिए, इम्यून सिस्टम के बेकाबू होने पर क्या होता है? ‘फ्रंटियर्स इन इम्यूनोलॉजी’ जर्नल में पब्लिश रिसर्च कहती है, कोरोना से संक्रमण के बाद कई मरीजों में रोगों से बचाने वाला इम्यून सिस्टम ही बेकाबू होने लगता है। आसान भाषा में समझें तो इम्यून सिस्टम इतना ओवरएक्टिव हो जाता है कि वायरस से लड़ने के साथ शरीर की कोशिकाओं को भी नुकसान पहुंचाने लगता है। ऐसा होने पर मरीजों के शरीर में खून के थक्के जम सकते हैं और ऑक्सीजन की कमी हो सकती है। ये दिक्कतें मरीज की हालत को और बिगाड़ती हैं। वैज्ञानिक भाषा में इसे साइटोकाइन स्टॉर्म कहते हैं।